एक कहानी जो सड़कों पर सुनी थी..

वह रात भर सड़कों पर लाठियां पीटने के साथ आवाज लगाता है, ताकि सभी चैन की नींद सो सके। लेकिन उसकी जिंदगी में चैन कहा था। चालीस साल पहले शादी के बाद वह अपनी बीबी के साथ इस शहर में आया था। कुछ कमाने, खाने और हंसी खुशी के साथ जीने..

लेकिन पूरे चालीस साल में कभी इतना नहीं कमा सका कि अपने घर लौट सके। वह दिन रात जागता रहा, दिन में रिक्शा चलाता और रात में शहर वालों को जागकर चैन की नींद सुलाता रहा। हालांकि महीने के आखिर में उसे जागने की छोटी कीमत मिल जाती, लेकिन रंगीन कागज का टुकड़ा (जिसे रुपया कहा जाता है) उसके लिए घर जाने का टिकट नहीं बन पाया।

पति-पत्नी जूझते रहे, हाथ पैर चलाते रहे ताकि घर लौटने के लिए पैसा जुटाया जा सके। इस बीच किसी सज्जन को उनकी कहानी पता चली और वो मदद करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शायद नियति को उनका घर लौटना मंजूर नहीं था। सालों से घर लौटने की राह देखते पति-पत्नी के चेहरे पर आई उम्मीद की लकीरें निराशा की छाई बन गई। पता चला कि उसकी बीबी को बच्चेदानी का कैंसर है। डॉक्टरों ने उसकी पत्नी को यात्रा करने से मना कर दिया। चालीस सालों से जो पैसे उन्होंने घर जाने के लिए जुटाए थे। वो इलाज में खर्च में हो गए। वह कमाता रहा और पत्नी का इलाज कराता रहा।

उसकी बीमार पत्नी की उम्र अब पचास साल से ज्यादा हो चुकी थी और डॉक्टरों ने कहा कि उम्र को देखते हुए ऑपरेशन करना खतरनाक होगा। बेहतर होगा कि इलाज की दवाएं खिलाने के साथ मौत का इंतजार किया जाए...रात-रात भर जागकर लोगों को सुलाने वाला अब दिन रात जागता है और अपनी बीबी के सोने का इंतजार करता है...उसके हाथ पकड़े हुए...

हां, अब वह घर जाने के लिए पैसे नहीं जुटाता और यह भी नहीं सोचता कि अपनी बीबी को अपने आंगन में चलते हुए अब देख पाएगा..क्योंकि किराए के कमरे में आंगन नहीं होते...

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