सूखे पत्तों पर बूंदों की तरह
सावन की पहली बारिश
मेरे बगीचे में उतरी
सूखे पत्तों पर बूंदों की तरह
प्यासी धरती के आंचल पर
रंगीले छींटों की तरह..
पेड़ों और खेतों के उस पार
घने मेघ सुस्ता रहे है
जमकर बरसने के बाद
जोर जोर...से कड़कती बिजली
कह रही है घनघोर मेघों से
बरसने को..
बगीचे में भीनी-भीनी सी सुगंध
मुस्कुरा रही है..
टहनियों तले, हवाओं के संग
बादलों के आने की खुशी में
जो उसके होने की वजह है
भीगी हुई धरती की तरह...
बादलों के जाने के बाद
हर गली से बूंदे दौड़ रही है
बहते पानी की शक्ल में..
पूरे प्रवाह के साथ..
उड़ते बादलों को पकड़ने के लिए
जो उन्हें छोड़ गए है..
सभ्य, असभ्य शहरों
और अनजाने गांवों में..
ब्याहीं हुई बेटी की तरह..
मेरे बगीचे में उतरी
सूखे पत्तों पर बूंदों की तरह
प्यासी धरती के आंचल पर
रंगीले छींटों की तरह..
पेड़ों और खेतों के उस पार
घने मेघ सुस्ता रहे है
जमकर बरसने के बाद
जोर जोर...से कड़कती बिजली
कह रही है घनघोर मेघों से
बरसने को..
बगीचे में भीनी-भीनी सी सुगंध
मुस्कुरा रही है..
टहनियों तले, हवाओं के संग
बादलों के आने की खुशी में
जो उसके होने की वजह है
भीगी हुई धरती की तरह...
बादलों के जाने के बाद
हर गली से बूंदे दौड़ रही है
बहते पानी की शक्ल में..
पूरे प्रवाह के साथ..
उड़ते बादलों को पकड़ने के लिए
जो उन्हें छोड़ गए है..
सभ्य, असभ्य शहरों
और अनजाने गांवों में..
ब्याहीं हुई बेटी की तरह..
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