कहानियों का गट्ठर
तुम जब भी आना मेरे पास
कहानियों का गट्ठर साथ लेते आना
जिसमें शरारतें हो, चालाकियां हो..
और बेईमानियां भी
जिससे मेरी तन्हाइयों का साया
तुम पर ना पड़े..
तुम्हारी कहानियों के किरदारों को
मैं रखूंगा अपने खाली पड़े कमरों में
जिनमें खामोशियां बसती है
भयावह अकेलेपन के साथ
चुप्पी ओढ़े हुए..
धुएं के गुबार सी
उठती है खामोशियां
और पसर जाती है पूरे मुहल्ले में
जैसे नीले आसमां को ढक लेता है
काला काला धुआं...
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