How modern indian youth think about poor youth
५ जनवरी २०११,
भारतीय जनसंचार संस्थान के कैम्पस रेडियो पर एक परिचर्चा का आयोजन विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के छात्रों ने किया था। जिसका विषय आरक्षण था। इस परिचर्चा में उन छात्रों ने भी भाग लिया था। जो भारत के गावों से आते है। जिन्हें बखूबी पता है क़ि, देश के गावों और कस्बों क़ि शिक्षा व्यवस्था कैसी है। गावों के विद्यार्थियों को किस तरह क़ि सुविधाएँ उनके माँ बाप दे पाते है। उनमें से बहुत से बच्चे ऐसे भी थे। जो आरक्षण के दायरे में आते है।
भारतीय जनसंचार संस्थान के कैम्पस रेडियो पर एक परिचर्चा का आयोजन विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के छात्रों ने किया था। जिसका विषय आरक्षण था। इस परिचर्चा में उन छात्रों ने भी भाग लिया था। जो भारत के गावों से आते है। जिन्हें बखूबी पता है क़ि, देश के गावों और कस्बों क़ि शिक्षा व्यवस्था कैसी है। गावों के विद्यार्थियों को किस तरह क़ि सुविधाएँ उनके माँ बाप दे पाते है। उनमें से बहुत से बच्चे ऐसे भी थे। जो आरक्षण के दायरे में आते है।
उपर्युक्त परिचर्चा में विज्ञापन और जनसंपर्क विभाग के कुछ छात्रों ने कहा क़ि जो बच्चे आरक्षण के अंतर्गत आते है। वे प्रतिभा और क्षमता के मामले में हमसे कमजोर होते है। हम उन्हें वो सम्मान नहीं देते। जो हम अपने उन साथियों को देते है। जो हमारी तरह बिना आरक्षण के यहाँ तक पहुंचे है। ये विचार उन युवाओं के नहीं थे। जिनके माँ बाप उनके लिए दो जून क़ि रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से कर पाते है। बल्कि ऐसा कहने वाले शीशे के घरों में सिगरेट का कश लेकर अपनी लाइफ बिंदास तरीके से जीते है । इनके डैड और माम लाखों रूपये हर महीने कमाते है और अपने बच्चों को एक आलिशान जिन्दगी जीने क़ि सौगात देते है।
इन युवाओं को शायद इस बात का एहसास नहीं है क़ि जो बच्चे आरक्षण क़ि मदद से शैक्षणिक संस्थानों में आते है । उनकी स्थिति उनकी तरह नही होती। उन्हें उनकी तरह क़ि सुविधाएँ नहीं मिल पाती। शिक्षा क़ि तो पूछिए ही मत क़ि क्या स्तर होता है उसका सभी को पता है। इस देश क़ि शिक्षा प्रणाली के बारे में हर प्रदेश का अपना बोर्ड है और वो अपने राज्यों के बच्चों क़ि शिक्षा व्यवस्था को कुर्सी की तरह बदलते है। किसी को इस बात का अहसास नहीं होता क़ि छात्रों का हित और अहित क्या है।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद अपने कुछ लाख बच्चों क़ि शिक्षा के लिए हर पल चिंतित दिखता है । हर रोज उनके तनाव को कम करने के उपाय परिषद द्वारा उठाये जाते है। कितने बच्चों ने आत्महत्या क़ि हर साल इस विषय पर बहस आयोजित किये जाते है। उन्हें रोकने के लिए कदम उठाये जाते है। ये बोर्ड इस देश का ही है जो अपने माध्यम के बच्चों का हद से ज्यादा ख्याल करता है। लेकिन उसे इसी देश के और बच्चों का ख्याल नहीं आता । विश्वद्यालय स्तर पर गठित यूजीसी जो लगता है क़ि सिर्फ कागजी फरमान जारी करने के लिए बना है। उसे इसका तनिक भी अहसास नहीं क़ि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा भी अन्य कालेजों/विश्वविद्यालयों में छात्र पढ़ते है।
इतनी उदासीनता के बावजूद भी इन इलाकों के छात्र अपने बलबूते इस देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते है। फिर शीशे के घरों में रहने वालों को घनघोर परेशानी होने लगती है। क्या केंद्र सरकार क़ि जिम्मेदारी नहीं बनती क़ि वो पिछड़े हुए छात्रों को मौके उपलब्ध कराए और उन्हें विकास में साझीदार बनाये। रही बात आरक्षण क़ि तो इस देश क़ि आरक्षण प्रणाली में खामी हों सकती है। लेकिन ये कहना क़ि उन बच्चों में प्रतिभा क़ि कमी होती है। कही ना कही उनकी प्रतिभा का घोर अपमान है। कहा जा सकता है क़ि जब सम्मान ही नहीं तो अपमान काहे का।
लेकिन दुःख होता है। जब देश के समृद्ध लोगो क़ि सोच का पता चलता है कि क्या सोचते है वे लोग देश के पिछड़ों के बारे में। अगर आप कैम्पस के अन्दर क़ि गतिविधियों को देखे तो साफ पता लग जाता है क़ि कितना गैप है इण्डिया और भारत के बच्चों में। ऐसी सोच क्यों बनी । इतना गैप क्यों बना। ये निश्चित रूप से सोचनीय है और इसके दुष्परिणाम अभी धीरे- धीरे सामने आ रहे है लेकिन यह परिणाम एक दिन वीभत्स रूप में सामने आएगा जब लुटियंस में रहने वाले गावों में रहने वालों को अपने रास्ते का रोड़ा मानने लगेंगे और उनके मौके पचाने लगेगें ...
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