गोरी चमड़ी, ईसायत का लबादा और सत्य शोधक समाज
धर्म भी कमाल क़ि चीज़ है। हर कोई इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है। चाहे वो पिछड़ा वर्ग क़ि राजनीति करने को हों या ब्राह्मणवाद और मनुवाद के खिलाफ लोगों को खड़ा करना हों। इसके लिए लोग झूठी कहानियाँ गढ़ते है, तो लम्बे चौड़े वादे भी करते हैं। बस यही कहानी है सत्य शोधक समाज की,जहाँ पिछड़ों और दलितों के हक का मुखौटा लगाकर लोगों को ईसाई धर्म के प्रति प्रेरित किया जाता है। जहाँ हिंदुत्व को जी भरकर गालियाँ दी जाती है और हवाला इस बात का दिया जाता है क़ि जहाँ -जहाँ ईसायत हैं वहां समानता , समभाव और एकरूपता विद्ममान है। पिछड़ों क़ि राजनीति के पीछे यहाँ, और भी बहुत कुछ है। यहाँ शराब औऱ कबाब का दौर है, तो हिन्दीं फिल्मों के गाने भी हैं। यहाँ प्रार्थनाओ के नाम पर हिंदी फिल्मों के गाने बड़े शौक से गाए जाते क्यों क़ि वो गाने किसी पिछड़े व्यक्ति ने लिखें हैं।
यह माना जा सकता हैं क़ि हिंन्दू समाज में कुछ खामियां है। यहाँ वर्ण व्यवस्था के चलते एक बड़ा वर्ग शोषण का शिकार हुआ हैं। जिसका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। क्यों कि प्रशासनिक या सार्वजनिक पदों पर कुछ वर्ण के लोगों का बोलबाला है और इसका प्रभाव आज भी विद्यमान है। और बाकी वर्ण के लोगों को इसका शिकार होना पड़ रहा है। इसी हक को पाने को लेकर कई संगठनों को निर्माण हुआ है। ये होना भी चाहिए क़ि लोग अपने हक के लिए लड़े। समाज में व्याप्त खामियों को दूर किया जाये ।
लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है क़ि जो लोग कहते है क़ि हिंन्दू धर्म में ब्राह्मणों का बोलबाला है और सब कुछ उन्होंने अपने लिए बनाया है। इसलिए हम इस धर्म को नहीं मानतें हैं। सही है, लेकिन क्या आप ने कभी इस धर्म को उन ब्राह्मणों और मनुवाद के समर्थको से मुक्ति दिलानें के बारे में सोचा। बजाय इसके कि लोगों को ईसायत को अपनाने के प्रति उकसाया जाय।
सत्य शोधक समाज क़ि उस महफिल में जिस दिन हम लोग पहुंचें। उस दिन लोगों का जमावड़ा कुछ ज्यादा ही था। क्यों क़ि उस दिन कुछ विशेष लोगों का आगमन वहां हुआ था। आराम से कुर्सियों पर पैर तान कर बैठे अमेरिकी बड़े मजे से हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद के लिए दी जा रही गालियों का मजा ले रहे थे। फिर बिहार से आये कुछ लोगों ने ईसायत के चमत्कार क़ि कहानियाँ भी सुनायी क़ि किस तरह उनके द्वारा क़ि गयी प्रार्थना से मरे हुए लोग भी जिन्दा हों गए और गॉड के प्रति उनकी आस्था बढ़ती गयी। फिर हिंदी फिल्मों के गीतों के माध्यम से भजन हुए और अमेरिका से आये गोरों ने बाइबिल क़ि लाइनें पढ़ी और सभी लोगों ने खड़े होकर गॉड को धन्यवाद किया। इस दौरान लोगों को चाय भी उपलब्ध कराई गयी और लोगों ने इसका भरपूर लुत्फ उठाया।
तभी सत्य शोधक समाज के दिनेश कुमार हमें मिले और गिनाने लगे एक-एक खामियां हिन्दू धर्म क़ि और निकलने लगी गालियाँ सवर्णों को। इस बात को स्वीकारने में मुझे कोई ऐतराज नहीं क़ि सामाजिक रूप से व्याप्त कुछ बड़ी खामियों को उन्होंने गिनाया। लेकिन जिस तरह से उन्होंने ने कहा क़ि ईसायत ही सब कुछ है। इस धर्म से ही हमें मुक्ति क़ि उम्मीद करनी चाहिए।
इसी बीच सत्य शोधक समाज के सरदार आये और हम लोग उनके साथ अंदर चले गए। सुनील सरदार ने सभी लोगों की गिनती की और मटन- चावल तैयार करने का आर्डर दे दिया। साथ ही हमसें भी कहा की खाकर जाना तुम लोग। कुछ लोंगों ने उनकी हाँ में सर हिलाते हुए हामी भर दी। सामने वाले कमरे में कुछ शानदार कुर्सियां और टेबल पड़े थें।
सरदार ने उसके बाद अमेरिकी फिरंगियों को बुलाया। जिनमें कुछ खुबसूरत जिस्म की मल्लिकाएं भी शामिल थी। उसके बाद अमेरिकी चर्च के उन धर्मावलम्बियों ने कुर्सियों पर कब्जा किया। जो लोग यहाँ के लोकल थें। उन्हें जमीन पर बैठने को कह दिया गया। कुछ देर हिंदुस्तान के राजनीतिक हालात पर चर्चा होती रही, तो पिछड़ों को लेकर गर्मागर्म बहस भी हुई।
अचानक दरवाजा खुलता है, और हमारे पीछे एक नौकर बीयर की चार-पांच बोतलें और साथ में चखना लिए खड़ा था। हमें पता चल गया था की अब यहाँ क्या होने वाला है, और तभी मेरे मित्र चलने का आग्रह किया और हम लोग वहां से चलते बने क्यों की शराब और शबाब की लत को हमने गले नहीं लगाया है। वहां से आते हुए रास्ते भर उनकी ही चर्चा होती रही की किस तरह पिछड़ों और दलितों के नाम का मुखौटा लगाकर लोग अपनी पाकेट की चाशनी को बनाये रखे हुए है......भला हों ऐसे लोगों का....
प्रवक्ता.काम पर प्रकाशित
यह माना जा सकता हैं क़ि हिंन्दू समाज में कुछ खामियां है। यहाँ वर्ण व्यवस्था के चलते एक बड़ा वर्ग शोषण का शिकार हुआ हैं। जिसका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। क्यों कि प्रशासनिक या सार्वजनिक पदों पर कुछ वर्ण के लोगों का बोलबाला है और इसका प्रभाव आज भी विद्यमान है। और बाकी वर्ण के लोगों को इसका शिकार होना पड़ रहा है। इसी हक को पाने को लेकर कई संगठनों को निर्माण हुआ है। ये होना भी चाहिए क़ि लोग अपने हक के लिए लड़े। समाज में व्याप्त खामियों को दूर किया जाये ।
लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है क़ि जो लोग कहते है क़ि हिंन्दू धर्म में ब्राह्मणों का बोलबाला है और सब कुछ उन्होंने अपने लिए बनाया है। इसलिए हम इस धर्म को नहीं मानतें हैं। सही है, लेकिन क्या आप ने कभी इस धर्म को उन ब्राह्मणों और मनुवाद के समर्थको से मुक्ति दिलानें के बारे में सोचा। बजाय इसके कि लोगों को ईसायत को अपनाने के प्रति उकसाया जाय।
सत्य शोधक समाज क़ि उस महफिल में जिस दिन हम लोग पहुंचें। उस दिन लोगों का जमावड़ा कुछ ज्यादा ही था। क्यों क़ि उस दिन कुछ विशेष लोगों का आगमन वहां हुआ था। आराम से कुर्सियों पर पैर तान कर बैठे अमेरिकी बड़े मजे से हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद के लिए दी जा रही गालियों का मजा ले रहे थे। फिर बिहार से आये कुछ लोगों ने ईसायत के चमत्कार क़ि कहानियाँ भी सुनायी क़ि किस तरह उनके द्वारा क़ि गयी प्रार्थना से मरे हुए लोग भी जिन्दा हों गए और गॉड के प्रति उनकी आस्था बढ़ती गयी। फिर हिंदी फिल्मों के गीतों के माध्यम से भजन हुए और अमेरिका से आये गोरों ने बाइबिल क़ि लाइनें पढ़ी और सभी लोगों ने खड़े होकर गॉड को धन्यवाद किया। इस दौरान लोगों को चाय भी उपलब्ध कराई गयी और लोगों ने इसका भरपूर लुत्फ उठाया।
तभी सत्य शोधक समाज के दिनेश कुमार हमें मिले और गिनाने लगे एक-एक खामियां हिन्दू धर्म क़ि और निकलने लगी गालियाँ सवर्णों को। इस बात को स्वीकारने में मुझे कोई ऐतराज नहीं क़ि सामाजिक रूप से व्याप्त कुछ बड़ी खामियों को उन्होंने गिनाया। लेकिन जिस तरह से उन्होंने ने कहा क़ि ईसायत ही सब कुछ है। इस धर्म से ही हमें मुक्ति क़ि उम्मीद करनी चाहिए।
इसी बीच सत्य शोधक समाज के सरदार आये और हम लोग उनके साथ अंदर चले गए। सुनील सरदार ने सभी लोगों की गिनती की और मटन- चावल तैयार करने का आर्डर दे दिया। साथ ही हमसें भी कहा की खाकर जाना तुम लोग। कुछ लोंगों ने उनकी हाँ में सर हिलाते हुए हामी भर दी। सामने वाले कमरे में कुछ शानदार कुर्सियां और टेबल पड़े थें।
सरदार ने उसके बाद अमेरिकी फिरंगियों को बुलाया। जिनमें कुछ खुबसूरत जिस्म की मल्लिकाएं भी शामिल थी। उसके बाद अमेरिकी चर्च के उन धर्मावलम्बियों ने कुर्सियों पर कब्जा किया। जो लोग यहाँ के लोकल थें। उन्हें जमीन पर बैठने को कह दिया गया। कुछ देर हिंदुस्तान के राजनीतिक हालात पर चर्चा होती रही, तो पिछड़ों को लेकर गर्मागर्म बहस भी हुई।
अचानक दरवाजा खुलता है, और हमारे पीछे एक नौकर बीयर की चार-पांच बोतलें और साथ में चखना लिए खड़ा था। हमें पता चल गया था की अब यहाँ क्या होने वाला है, और तभी मेरे मित्र चलने का आग्रह किया और हम लोग वहां से चलते बने क्यों की शराब और शबाब की लत को हमने गले नहीं लगाया है। वहां से आते हुए रास्ते भर उनकी ही चर्चा होती रही की किस तरह पिछड़ों और दलितों के नाम का मुखौटा लगाकर लोग अपनी पाकेट की चाशनी को बनाये रखे हुए है......भला हों ऐसे लोगों का....
प्रवक्ता.काम पर प्रकाशित
mere bhai aapka aatmavishwaspirna, spashta aur paripakwa lekhan hriday ko sparsha karne wala hai. aapki vaicharikta ki disha se mai prabhawit hua. smaj ke vikas ke liye chinta tab hi hoti hai jab ham samaj ko apna mante hain aur uske dukh se hame pida hoti hai. bharat vividhta me ekta ka hi nam hai. bhartiyata par har or se prahar ho raha hai..andar se bhi aur bahar se bhi. hame bahut adhik sawdhani aur kushalta se apna paksha rakhana hai.... go ahead...........
जवाब देंहटाएंbahut sahi pahchana . is samaj ko todne ke liye bahut se sanghthan apne ko pichdo aur dalito ka hiteshi batati hai.par vo apne dharm ko todne k liye kaam kar rahe hai..
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