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दिल्ली गेट तक एक चुप्पी पसरी रही..
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दोपहर के दो बज रहे थे..चौराहे पर एक ठेले के साथ कई रिक्शे खड़े थे..मैं उनकी तरफ बढ़ा और एक से पूछा देल्ही गेट चलोगे, चलिए..कितना लोगे.. बीस रुपया..चलो.. बैठिए ना थोड़ा खा लूं..ठीक है..मुझे लगा वो खाना खाएगा...देखा तो हाथों में चाऊमीन का एक भरा पूरा प्लेट लिए तख्ते पर बैठा था. थोड़ी देर बाद..जब चलने लगा, मैंने पूछा..आज कल इसी पर कट रही है क्या..उसने कहा, क्या करें साहब दस रुपए में तो खाना मिलता नहीं..सौ-पचास रुपए कि थाली आती है..उससे अच्छा है ये..दस रुपए में एक प्लेट भर के देता है..मैं अचानक बोल पड़ा, पेट भरने के लिए खाते हो या भूख मारने के लिए...उसने तिलमिलाई नजरों से देखा..दिल्ली गेट तक एक चुप्पी पसरी रही.. 29-07-2013
मेरे राम..
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मेरे राम मस्जिद में भी रहते है/थे/सकते है..और तुम लोगों ने उसी मस्जिद को तोड़ दिया..और तबसे मैं हिंदू ना रहा.. और राष्ट्र तो एक कल्पना है मेरे लिए..राष्ट्र जैसी चीजें सत्ता के लिए जरुरी है. और सत्ता में मेरा कोई स्टेक नहीं है..और सत्ता के मद में ही गर्भ में पल रहे शिशु को तलवारों की नोक पर टांग दिया जाता है..मेरी स्थिति तो 70-80 प्रतिशत के समान है..20 रुपए में रोजाना दो जून की रोटी..मेरे राम के पास मंदिर/मस्जिद की च्वॉइस रखने की जगह ही नहीं है. 13.07.2013
उसे निहारना
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मुझे जब भी मौका मिलता है मैं उसे निहारता रहता हूं. दरअसल इसके पीछे एक सघन और रहस्यमयी आकर्षण है. जबकि वो मुझे नापसंद करती है. यह आकर्षण उसकी आहट मिलते ही मुझ पर हावी हो जाता है..जब वो मेरे सामने होती है..मैं निहारता रहता हूं उसे. अपने सुकून के लिए.. क्योंकि जब आप एक चुम्बकीय शक्ति से बंधे होते है..सुकून आपके नियंत्रण में नहीं होता. 04.07.2013
SHORT STORY: मेरी दुनिया की औरतें..
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गांव में बाढ़ आई थी..एक ही नाव पर..गोइठा, बकरी के बच्चे..दही बेचने वालियों के दौरे..हिंदू-मुस्लिम, औरत-मर्द सब एक साथ..सुबह का वक्त था..हवा तेज थी..डेंगी नाव पर उछल रहा बकरी का बच्चा बाढ़ के गहरे पानी में गिर गया..हाय राम, हाय अल्ला..सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे..अचानक वो अपने कपड़े खोलकर फेंकने लगी..बोली, मैं उसे मरने नहीं दूंगी और बिना कुछ सोचे कूद गई..सब अवाक थे..मैंने कहा, ऐसी हैं मेरी दुनिया की औरतें.. 02-07-2013