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जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निजी अनुभव: बोलते ही कहां है हम।

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तस्वीरः गूगल जिसे देखो वही लोन दे रहा है। बैंक वाले, इन्वेस्टमेंट वाले और फलां फलां। ना जाने कौन-कौन। कोई सैलरी पर दे रहा है। कोई प्रॉपर्टी पर दे रहा है। कोई बीमा पर दे रहा है। कोई कार लोन दे रहा है। कोई व्हीकल लोन दे रहा है। कोई बीमा बेच रहा है। सब बेचना ही चाह रहे हैं। दिन भर मोबाइल पर मैसेज और कॉल्स आती रहती हैं। सब बेच ही रहे हैं। लोन दे ही रहे हैं। एक मोहतरमा आज मिली तो पहले प्यार से बतियायीं और फिर बोली अगर किसी को लोन लेना हो तो बताइएगा। हम वेल्थ इनवेस्टमेंट से हैं। करोड़ों का लोन देते हैं। प्रॉपर्टी के अगेंस्ट, भारी मशीन्स के लिए। बड़ी कंपनियों के लिए। हम सुनते रहे। मन किया कह दे हमको भी लोन चाहिए। दे दीजिए। लेकिन हमारे पास प्रॉपर्टी नहीं है। जमीन नहीं। मशीन नहीं है। हम बड़ी पार्टी नहीं है। लेकिन मेरे पास एक दिल है। अच्छा भला बुरा सोचता है। कविताएं सुनाता है। दर्द पर मरहम लगाता है। अकेले में लोरी सुनाता है। कुछ बोलता नहीं, सिर्फ सुनता है और महसूसता है। कहिए क्या देंगी आप मेरे दिल के अगेंस्ट लोन। एक करोड़। लेकिन हम ना बोले। कसम से हम ना बोले.. क्योंकि जब लोन का बाजार खत्म...

निजी डायरी: सबसे मुश्किल होता है अपने पिता को समझा पाना।

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शराब पीकर सड़क पर गिरे पिता के घाव पोंछता बेटा। तस्वीरः गूगल सबसे मुश्किल होता है अपने पिता को समझा पाना। जब भी कुछ कहो, उनका एक ही जवाब है। सब समझा के थक गए अब तुम ही बचे हो। उन्हें नहीं पता क्या होता है, जब वो शराब पीकर सड़कों पर गिर जाते हैं। घायल हो जाते हैं और राह चलते लोग उन्हें पकड़कर घर लाते हैं। कौन समझाए उन्हें। पूरा मोहल्ला समझा के थक गया है। सबको एक ही जवाब कि सब समझा के थक गए अब तुम्हीं बाकी हो। कौन समझाए मेरे पिता को।