ब्लॉग डायरीः अंगुलियों को कलम से आलिंगनबद्ध होना पसंद नहीं
courtesy_google इस शहर में आए हुए मुझे दो महीने से ज्यादा हो गए. लेकिन मेरा मन ना तो ऑफिस के काम में लगता है, ना उस कमरे में जहां मैं रहता हूं. हालांकि एक बल्ब की रोशनी मेरी तन्हाइयों को रोशन करने की फिराक में लगी रहती है. मैं डूबता रहता हूं..अपने भूत और भविष्य के क्रिया कलापों को लेकर, तो कभी किसी अमूर्त काया से कविता के मार्फत अपने प्रेम का इजहार करता हूं. 2. एक खूंटी के जरिए दीवार के सहारे लटकी बल्ब की रोशनी मेरे सोने तक जगी रहती है. सिर्फ इसीलिए कि मैं एक बार उसकी तरफ नजरें उठा कर देख लूं. लेकिन अकेलेपन से आजिज होकर जब मैं खुद से छुटकारा पाने कोशिश करता हूं. मेरी आंखें, मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगती है. ऐसे में उस रोशनी से आंखें मिला पाना संभव नहीं हो पाता और वो रोशनी अगली रात के इंतजार में अपनी आंखें बंद कर लेती है. इससे पहले कलम, मस्तिष्क के साथ कदम ताल करती थीं और वाक्यों में एक लय बनी रहती थीं. लेकिन जब से अगुंलियां की-बोर्ड पर थिरकने लगी है. मस्तिष्क का नियंत्रण भी की-बोर्ड के हाथ में चला गया है. और जब ये अंगुलियां कलम थामती है तो मस्तिष्क, कलम से पीछा छुड़ान