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ब्लॉग डायरीः अंगुलियों को कलम से आलिंगनबद्ध होना पसंद नहीं

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courtesy_google इस शहर में आए हुए मुझे दो महीने से ज्यादा हो गए. लेकिन मेरा मन ना तो ऑफिस के काम में लगता है, ना उस कमरे में जहां मैं रहता हूं. हालांकि एक बल्ब की रोशनी मेरी तन्हाइयों को रोशन करने की फिराक में लगी रहती है. मैं डूबता रहता हूं..अपने भूत और भविष्य के क्रिया कलापों को लेकर, तो कभी किसी अमूर्त काया से कविता के मार्फत अपने प्रेम का इजहार करता हूं. 2. एक खूंटी के जरिए दीवार के सहारे लटकी बल्ब की रोशनी मेरे सोने तक जगी रहती है. सिर्फ इसीलिए कि मैं एक बार उसकी तरफ नजरें उठा कर देख लूं. लेकिन अकेलेपन से आजिज होकर जब मैं खुद से छुटकारा पाने कोशिश करता हूं. मेरी आंखें, मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगती है. ऐसे में उस रोशनी से आंखें मिला पाना संभव नहीं हो पाता और वो रोशनी अगली रात के इंतजार में अपनी आंखें बंद कर लेती है.  इससे पहले कलम, मस्तिष्क के साथ कदम ताल करती थीं और वाक्यों में एक लय बनी रहती थीं. लेकिन जब से अगुंलियां की-बोर्ड पर थिरकने लगी है. मस्तिष्क का नियंत्रण भी की-बोर्ड के हाथ में चला गया है. और जब ये अंगुलियां कलम थामती है तो मस्तिष्क, कलम से पीछा छु...

नोट्सः तेरे काबिल होने के लिए, मुझे कितने इम्तहान देने होंगे.

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लोग बाजार में अपने हमशक्ल ढूंढ़ लेते हैं. जब पूरी दुनिया उदास लगे, कविता में डूब जाया करो. तमाम चाहने वालों के बावजूद मैं अकेला पड़ जाता हूं.  मुझे माफ करना, मेरे चाहने वालों, मैं किसी और को चाहता हूं.  कुछ लोग मेरे अपने है, मांग मत लेना उन्हें..मना नहीं कर पाऊंगा. तेरे काबिल होने के लिए, मुझे कितने इम्तहान देने होंगे.  15.05.2013

मैं कविता से प्रेम करता हूं.

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courtesy_google मैं कविता से प्रेम करता हूं. ...और तुम्हारे पास कविता की भावनाएं हैं भाव, कविता के लिए आत्मा की तरह है.. इसी धागे के दो सिरे हैं हम तुम और तुम तो जानती हो.. भाव के बिना कविता अधूरी है.. मेरे जीवन में तुम्हारा होना ही कविता का होना है.. ताकि मैं प्रेम करता रहूं ..............कविता से 05.05.2013

सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा

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एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी जिसे प्रेम करता हूं जब रोती है.  सारा जहां कहता है  बारिश हो रही है.. जब हंसती है  दुनिया वाले  दिन को खुशगवार कहते है और जब संवरती है तो  उस रात को  पूर्णिमा का नाम देते है. एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी  उसके रोने, हंसने, और संवरने से  निढाल होते है..दुनिया वाले देखने के बजाय  महसूस करना रोने, हंसने और संवरने से  जो साकार होती है  वहीं है मेरी प्रेयसी  नजर आये, तो  मेरा जिक्र करना  सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा 03.05.2013

हम छुप रहे है..मिलने के बहाने.

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शाम डूब रही है.. चांद के आगोश में हम छुप रहे है मिलने के बहाने.. इस शाम का रंग ..बड़ा बेरंग है. घुंघरु खनके नहीं मेरी गली के चौराहे पर इश्क का दीया मेरे दिल में भी जलता अफसोस, उस लौ में संवरने वाला नहीं मिलता. कत्ल भरी निगाहों की मल्लिका सिर्फ तुम्हीं हो वाह, ये भरम सिर्फ तुम्हीं को है. मगर, हम भी वो लौ है जो, नहीं बुझते .......जहर के छीटों  से इक हाथ में नई फसल की सूखी डांठ दूजे में मौत का औजार खुद का पेट भरने को कतर रहा हूं जिस्म लहलहाते खेतों का.. तपन भरी धूप में छलकते पसीने की बूंद कुछ गले उतर रही है सूखे गले की सूखी थूंक चाय में भीगी हुई, रोटियों की तरह मुझे चाहिए गरमागरम, कुछ आपकी तरह.