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जून, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरा अक्स तैरता है..

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इन दो तस्वीरों को देख जुबां पे कुछ शब्द यूं मचल उठे... पानी की मचलती तरंगों में मेरा अक्स तैरता है आ..कश्ती के सहारे महल के मुंडेर पे चले किसे चाह नहीं होती महल के साए में जल विहार की.. जलमहल, जयपुर राजस्थान भ्रमण के दौरान...23-06-2012 फोटो साभारः मनोज श्रेष्ठ

कहानियों का गट्ठर

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तुम जब भी आना मेरे पास कहानियों का गट्ठर साथ लेते आना जिसमें शरारतें हो, चालाकियां हो.. और बेईमानियां भी जिससे मेरी तन्हाइयों का साया तुम पर ना पड़े.. तुम्हारी कहानियों के किरदारों को मैं रखूंगा अपने खाली पड़े कमरों में जिनमें खामोशियां बसती है भयावह अकेलेपन के साथ चुप्पी ओढ़े हुए.. धुएं के गुबार सी उठती है खामोशियां और पसर जाती है पूरे मुहल्ले में जैसे नीले आसमां को ढक लेता है काला काला धुआं...