
कौन कहता है ? कवि सम्मेलन के दिन लद गए .. आम दिनों की तरह मैं दफ्तर में ही था। जयपुर शहर के बिड़ला ऑडिटोरियम में कवि सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। मैं जाना चाहता था कवि सम्मेलन में लेकिन पास का जुगाड़ हो नहीं पाया था। ईमानदारी से कहूं तो पास के लिए मैंने कोशिश भी नहीं की थी। लेकिन दिल में इच्छा थी कि चलकर गोपाल दास नीरज को सुना जाए। उनसे साक्षात रूबरू हुआ जाए और जिनकी कविताओं और गीतों का पाठ बचपन में किया करते थे। खुद उनकी आवाज में कविता पाठ सुना जाए। शाम के पांच बज रहे थे। मेरी शिफ्ट खत्म होने वाली थी। लिहाजा कवि सम्मेलन में जाने का मेरे पास अच्छा मौका था। मैंने पास के लिए अपने साथी सहकर्मी से कहा, और बंदोबस्त हो गया। आधे घंटे बाद मैं निकल चुका था गोपाल दास नीरज को सुनने के लिए... पहली बार एक श्रोता के तौर पर कवि सम्मेलन में शिरकत करने जा रहा था। इससे पहले कभी बिड़ला ऑडिटोरियम भी नहीं आया था। इसलिए ऑटो वाले को बोला कि भइया थोड़ा तेज चलो। ऑटोचालक भी जवान था और मेरे प्रेरित करने से उसने गियर दबाया और 5 बजकर 45 मिनट पर मैं बिड़ला ऑडिटोरियम में था। भव्य बिड़ला ऑडिटोरियम...