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Intestinal Tuberculosis Wali Kahaniya

1. उसने सवाल किया , कहां हो। मैं- फलाना वाली गली के तिराहे पर जो हैंडपंप है वहां। उसने पूछा- मिलना नहीं है। मैं- क्यों नहीं , बताओ कब मिलना है ? उसने कहा- वहीं रुको। मैं आ रही हूं। दो मिनट के अंदर वो आ गई। मैं वहीं बुत बना  रहा.. मन की तितलियां बोलीं.. आगे बढ़ो। मैं उसकी ओर आगे बढ़ा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए। उसने हड़बड़ाकर कहा , आज मेरा व्रत है। मेरे मुंह से सहसा निकल पड़ा। हाय अल्लाह.. चढ़ती रात में अधूरे चुंबन के साथ अधूरे  रह गए हम । 2. ... और अब जबकि मैं उस दुनिया का हिस्सा नहीं हूं। रात को सपने में कोई सीनियर डांट रहा था (जिसका चेहरा मुझे याद नहीं) कि फेसबुक की ट्रेंड लिस्ट चेक नहीं करते तुम लोग.. वहां कई सारी स्टोरीज पड़ी हैं। मैं अधखुली निद्रा में कहना भूल गया कि सर , मैंने आपकी दुनिया से अपना नाम कटा लिया है।

Intestinal Tuberculosis Wali Kahaniya - 1

दिन भर ऑफिस में खटने के बाद कॉर्तिकेय और मैं घर की ओर चल पड़े। हालांकि मेरी तबीयत खुश नहीं थी और मुझे इस बात का अंदाजा हो गया था कि आज फिर अस्पताल न जाना पड़े। कई सारी चिंताएं मेरी दिमाग में घूम रही थी। नौकरी वापस ज्वॉइन किए हुए कुछ ही दिन हुए थे और सैलरी अभी मिली नहीं थी। जैसे तैसे खर्चा चल रहा था। इस बात को लेकर मन अंदर ही अंदर डरा हुआ था। आधे रास्ते तक पहुंचे पेट में दर्द होना शुरू हो गया। मैंने कार्तिकेय से कहा कि मेरे पेट में दर्द हो रहा है। उसने दवाइयों के बारे में पूछा, मैंने बताया कि दवाइयां तो मैं टाइम से खा रहा हूं और आज भी समय पर ले लिया था, लेकिन दर्द हो रहा है। कार्तिकेय ने मुझे कमरे पर छोड़ा और अपने कमरे चला गया। हालांकि जाते हुए उसने इत्तला किया कि अगर कोई परेशानी हो, तो मैं उसे कॉल कर लूं। कॉर्तिकेय के जाने पर मैं भागा-भागा कमरे पर पहुंचा और जाते ही पसर गया। काम वाली बाई और खाना बना गई थी और जुठे बर्तन बेसिन पड़े हुए थे। मैंने जूते खोले और कराहते हुए हाथ मुंह धोएं। आइने के सामने जब खुद से नजरें मिलाई तो आंखों में लगभग आंसू आ गए थे। पेट की टीबी ने तोड़ के रख दिया थ

JULY KI EK RAT KE BAD

21वीं सदी की प्रेम कहानियों को उलट के यानि आखिर से पढ़ना शुरू करो, तुम पाओगे कि हर कहानी का अंत सुखद है। ........................................................................... वो लिखता कम, काटता ज्यादा है। ........................................................................... लड़का: तुमसे बात करने में कोई फायदा नहीं है शायद! लड़की: फायदा सोच के आए थे? बनिए हो गए हो? लड़का: चलें ? लड़की: इसी में फायदा लग रहा होगा? लड़का: ऎसा तो नहीं है! लड़की: जाने दो खैर, ऑय विल पे फॉर कॉफी, ये नुकसान मैं भुगत लूंगी, तुम इतने फायदे में रहो! (जुलाई की एक रात) ......................................................................... "एक दिन में पहचान तो नहीं बदल जाती, रिश्ते तो खत्म नहीं हो जाते" (जुलाई की एक रात "बीतने" के बाद यही याद रहा बस) .......................................................... ...आजकल की कहानियां करण जौहर की फिल्मों की तरह डिजायनर ज्यादा है, कथ्य के मामले बेहद कमजोर। ......................................................

SHORT STORY: मेरी दुनिया की औरतें..

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गांव में बाढ़ आई थी..एक ही नाव पर..गोइठा, बकरी के बच्चे..दही बेचने वालियों के दौरे..हिंदू-मुस्लिम, औरत-मर्द सब एक साथ..सुबह का वक्त था..हवा तेज थी..डेंगी नाव पर उछल रहा बकरी का बच्चा बाढ़ के गहरे पानी में गिर गया..हाय राम, हाय अल्ला..सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे..अचानक वो अपने कपड़े खोलकर फेंकने लगी..बोली, मैं उसे मरने नहीं दूंगी और बिना कुछ सोचे कूद गई..सब अवाक थे..मैंने कहा, ऐसी हैं मेरी दुनिया की औरतें.. 02-07-2013 

SHORT STORY (लघु कथा) मां की दुआओं में असर होता है.

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गलियों, छज्जों और खिड़कियों की खाक छानने के बाद भी अमूमन दिन में एकाध बार ही उसके दर्शन हो पाते,     उस दिन वह अपनी मां के साथ आयी, कुएं की देहरी पर मैं उसकी राह देख रहा था। पूजा करने के बाद प्रसाद देने के बहाने वह मेरे पास आई..मैंने पूछा, क्या मांगा, बोली, तुम्हारी सलामती और साथ। तुम्हारी मां ने क्या मांगा, घर, वर और हजारों खुशियां..उसने प्रसाद देने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कानों में कहा, मेरी शादी की बात चल रही है..मेरी आंखे उसके चेहरे पर ठहर गई..अंगुलियां, उसकी अंगुलियों से उलझ गई...मैं उसे खोने के डर में डूबता चला गया..दूर कहीं अंतर्मन में गूंज रहा था। मां की दुआओं में असर होता है...

SHORT STORY; ALIA

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Courtesy_Google 12 घंटे कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखे गड़ाने के बाद रोड किनारे खड़े अशोक के पेड़ों की पत्तियों को, सुहानी हवा के साथ झूमते देखना, आंखों के लिए सुकुन भरा था। चांदनी रात अपने शबाब पर थी और घड़ी की सुइयां एक दूसरे को आलिंगन कर रही थीं। जवां रात के आगोश में सड़कों पर चहलकदमी करना रुमानी भरा था। मैं कभी आसमां की ओर देखता, तो कभी मकानों की मुंडेर पर टिमटिमाते छोटे छोटे बल्बों को चिढ़ाता..तीन बंटा तीन सौ तीन, सब्जी मंडी से होते हुए जब मैं अपने आशियाने की चौखट पर पहुंचा, तो चारों तरफ सन्नाटा था। चांद, ऊंची दीवारों की ओट में छुप गया था और याद शहर का वो मोहल्ला लंबे-लंबे खर्राटे भर रहा था। एक दो बार कुत्तों के भौंकने की आवाजें भी सुनाई दी..जो कहीं अंधेरे में गुम हो गई..मैंने दरवाजा खटखटाया..कोई जवाब तो नहीं मिला..लेकिन दरवाजा खुल गया। ओह.. तो मिस आलिया सो गई हैं..और वो भी मेरे ही बिस्तर पे..क्या बात है...मैंने बैग पटका और आलिया को जगाने के लिए आवाज दी..आलिया, उठो यार, आज तो तुम बहुत जल्दी सो गई...डिनर कर लिया...आज पत्ते नहीं खेलोगी क्या...मैं यूं ही आवाज लगाता रहा..लेकिन आलिय

कहानीः मुन्ना बो

ये कहानी लिखने का मेरा मकसद उस खेतिहर मजदूर महिला की स्थिति को बयान करना था। जिसे कई बीघा खेतों के मालिक , स्वयंभू राजाधिराज अपनी उपभोग की वस्तु समझते थे.... राम प्रसाद के तीसरे बेटे की शादी में मुन्ना बो जमकर नाचीं। गांव के बैंड बाजे में उस समय नागिन धुन खूब चलन में था। बाजे वालों की टिरटिराती धुनों पर उसके बदन के लोच ने मुहल्ले के पहलवानों का चैन नोंच लिया। दरअसल मुन्ना बो पहली बार गांव वालों के सामने आई थी , अलहदा तरीके से बिना लाज शर्म के बाजे में नाचते हुए और उनका इस तरह सबके सामने आना खुले आकाश में लपकती बिजली की तरह था। हालांकि रामप्रसाद के तीसरे बेटे की शादी थी , इसलिए  दूल्हे का श्रृंगार देखने में भी व्यस्त थे। लेकिन परछन खत्म होते ही सबकी निगाहें मुन्ना बो पर टिक गई। तराशे हुए नैन नक्श और चम्पई रंग वाली मुन्ना बो की अल्हड़ चाल को देखकर मुहल्ले के छोकरों और मर्दों के बदन में सांप लोटने लगा। बिना संकोच किए वह किसी से भी बात कर सकती थी। यह उसके व्यक्तित्व की खासियत थी या कमजोरी यह खुद उसे भी मालूम नहीं था। तीसरे भाई की शादी के बाद मुन्ना पहली बार पंजाब से लौटे थे। दरअ

हजरात, ये मनाली और शिमला नहीं, गुलाबी शहर है।

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इससे पहले कि आप कोई कयास लगाए। मैं स्पष्ट कर दूं कि ये तस्वीरें किसी स्वप्निले शहर की नहीं हैं। ना ही ये शिमला और मनाली है। पहाड़ों के साए से तीसरी निगाह में कैद इन तस्वीरों पर बादलों की छाया हैं। गुलाबी शहर जयपुर का मौसम इन दिनों बारिश और बादलों के कहकहे से गुलजार हैं।  अरब सागर के दरिया से उठा मानसून भादो के पखवाड़े में नाहरगढ़ की पहाडिय़ों पर बादलों के स्वरुप में आराम फरमा रहा हैं। लिहाजा पिछले दस दिनों से यहां रिमझिम बारिश का दौर जारी हैं। किले, इमारतें और पैलेस नहा धोकर मुस्कुरा रहे हैं अपने मेहमानों के स्वागत में, तो पहाडिय़ों ने हरियाली की हल्की चादर ओढ़ ली हैं। आपने सुना होगा, भादों की रात बड़ी डरावनी होती हैं? लेकिन मैं नहीं मानता, क्योंकि गुलाबी शहर में भादो के दिन और रात मौसम के गुलाबीपन में भीगे हुए हैं। आपने शरद, शिशिर और बसंत में भले ही गुलाबी शहर को आंखों भर निहारा हो। लेकिन वर्षा ऋतु में इसे देखना मादकता भरा हैं। जब आपकी आंखें पहाड़ों पर बैठे बादलों से टकरा जाए.... सभी फोटोः मनोज श्रेष्ठ

Short Story: निकालो.. देख क्या रहे हो

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शाम का समय था। हल्की बरसात हुई थी, लेकिन अब भी आसमान में बादल घिरे हुए थे। वह उसे देखने की चाहत लिए अपने घर से निकला। उसे यकीन था वह अपने बगीचे में होगी। बेचैन सा वह तेज कदमों से चलने लगा, दो कदम चलने के बाद हल्की सी दौड़ लगा लेता। ताकि जल्दी पहुंचा जा सके। उसने दूर से ही देखा कि बगीचे के झुरमुट में कोई खड़ा हैं। वह तेजी से बढ़ता गया। उसे पता ही नहीं चला कि वह कब उस बगीचे के पास आ गया। जहां बेर के पेड़ लगे थे। वो बगीचे के इस कोने से उस कोने तक टहलती मचल रही थी। कभी इस पेड़ पर देखती, कभी उस डाल पर, उसने ठिगने से अमरुद की डाली को उछलकर पकड़ना चाहा कि पैरों में बेर का कांटा चुभ पड़ा। वह रो पड़ी..आह करते हुए..कांटा निकालने की जगह कांटे को देखकर रोती रही। वह बगीचे को घेरने के लिए लगे काटों के बाड़ के समीप खड़ा था। कांटा चुभने से वह बैठ गई थी। इसलिए वह बाड़ के घेरे पर ही खड़ा हो गया, उसने देखा तो कुछ नहीं बोला, आंसू पोंछने लगी। मूक सहमति पाकर वह उसके समीप गया। लेकिन उसके पैरों को छूने की हिम्मत ना कर सका। यूं ही देखता रहा। उसने मासूमियत से कहा, कांटा चुभ गया है..उसने दे

Short Story गिलास का गिरना

उस छोटे से आशियाने में जगह बनाते हुए आज सारी चीजें अपनी जगह पर खड़ी थी। मानो उन्हें किसी के आने का पूर्वाभास हो। लेकिन उसका सेलफोन खामोश था। वह निराश मन से उठा और पानी पीने के लिए गिलास भरने लगा। अचानक मुड़ा कि गिलास उसके हाथों से उछलकर जमीन पर आ गिरा..चंद सेकेंडों में गिलास के साथ वह भी उछलने लगा..उसके अंर्तमन में उसके मां की आवाज गूंज रही थी। “ बेटा, जब भरा हुआ पानी का गिलास गिर जाए तो समझ लो , कोई आने को हैं ” । गिलास और उसके उछलने के बीच डोरबेल की घंटी आवाज दे रही थी मिलन के बंद दरवाजे को खोलने के लिए..

एक कहानी जो सड़कों पर सुनी थी..

वह रात भर सड़कों पर लाठियां पीटने के साथ आवाज लगाता है, ताकि सभी चैन की नींद सो सके। लेकिन उसकी जिंदगी में चैन कहा था। चालीस साल पहले शादी के बाद वह अपनी बीबी के साथ इस शहर में आया था। कुछ कमाने, खाने और हंसी खुशी के साथ जीने.. लेकिन पूरे चालीस साल में कभी इतना नहीं कमा सका कि अपने घर लौट सके। वह दिन रात जागता रहा, दिन में रिक्शा चलाता और रात में शहर वालों को जागकर चैन की नींद सुलाता रहा। हालांकि महीने क े आखिर में उसे जागने की छोटी कीमत मिल जाती, लेकिन रंगीन कागज का टुकड़ा (जिसे रुपया कहा जाता है) उसके लिए घर जाने का टिकट नहीं बन पाया। पति-पत्नी जूझते रहे, हाथ पैर चलाते रहे ताकि घर लौटने के लिए पैसा जुटाया जा सके। इस बीच किसी सज्जन को उनकी कहानी पता चली और वो मदद करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शायद नियति को उनका घर लौटना मंजूर नहीं था। सालों से घर लौटने की राह देखते पति-पत्नी के चेहरे पर आई उम्मीद की लकीरें निराशा की छाई बन गई। पता चला कि उसकी बीबी को बच्चेदानी का कैंसर है। डॉक्टरों ने उसकी पत्नी को यात्रा करने से मना कर दिया। चालीस सालों से जो पैसे उन्होंने घर जाने क