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Let them sing..I Support Pragash (बोल कि लब आजाद है तेरे..)

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बोल कि लब आजाद है तेरे..बोल कि जुबां तेरी है...क्या गाना, डांस करना और सार्वजनिक स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति मुस्लिम महिलाओं के लिए वर्जित है? क्या इस्लाम महिलाओं को इस बात की आजादी नहीं देता? क्या इस्लाम आबिदा परवीन, नूरजहां, रेशमा, बेगम अख्तर के लिए अलग है? कश्मीर की उन लड़कियों के लिए दूसरा इस्लाम है? जिनके खिलाफ फतवा जारी किया है तथाकथित इस्लाम के पहरेदारों ने। मोहम्मद साहब भी बहुत खुश होंगे उनकी इस इस्लाम परस्ती पर? सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों का नाचना गाना अगर इस्लाम की तौहीन है तो कश्मीरियों के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। जब उनके मौलिक अधिकारों पर फतवा जारी होने लगे। कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थाओं के जड़ों में मट्ठा डालने वाली ताकतों का पुरजोर मुखालफत करने की जरुरत है। प्रगतिशील समाज को बोलना होगा, अपने बच्चों के लिए..बेहतर समाज के लिए.. इन फतवाधारियों को सर उठाने का मौका ना दो.. बोल कि लब आजाद दै तेरे... लेकिन इन सबके बीच दुखद बात ये है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती ने खानापूर्ति करके छोड़ दिया। हर कश्मीरी स्वतंत्र है नाचने और गान