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जनता के पैसे के दुरूपयोग पर चुप्पी, क्यों..?

हालियॉ रिलीज फिल्म 'नाँकआउट' का एक चरित्र कहता है। ' क्या तुम्हें पता है कि हजार रुपए का नोट ' गुलाबी क्यों होता हैं'। क्यों कि वह देश की जनता के खून से रंगा होता है। लेकिन शायद कांग्रेसियों को इस बात का इल्म नहीं हैं कि उनके पालतू पैसाखोरों ने जिस पैसों से अपनी सेहत और मालदार बनाई है, वो पैसा भी खून पसीने से कमाया हुआ था। देश के नामी गिरामी खानदान के राजकुमार और भविष्य की प्रधानमंत्री कुर्सी पर नजर गङाए 'युवराज' को ये दोहराना आता है कि 'केन्द्र का एक रुपया आम आदमी के पास पन्द्रह पैसे के रूप में पहुँचता हैं। लेकिन ये नजर नहीं आता कि उन्हीं के नाँक के नीचे उनके पालतुओं नें करोंङों पचा डाले। पता भी कैसे चले जब आँखों पर गांधारी की तरह पट्टी बंधी हो और कान बहरे बन गए हो। यही गांधी परिवार है,जिसका पसंदीदा डॉयलॉग है 'आम आदमी का हाथ, कांग्रेस के साथ' लेकिन मैं इसको इस तरह देख रहा हूँ कि 'आम आदमी का पॉकेट,कांग्रेस के हाथ'। विकास और पारदर्शिता के बल पर युवाओं को भ्रष्ट राजनीति की काल कोठरी में खींच लाने का दंभ भरने वाले युवराज को अपने पैसाखोर