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FRUSTATION

बाहर बहुत ठंड थी , चुभती हवा गलियों में सांय सांय करती हुई मंडरा रही थी , एहितयातन लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर रजाइयों में दुबके पड़े थे। ऑफिस से आने के बाद वो फर्श पर पड़े गद्दे पर पसर गया.. बैचलरों के कमरे में बेड का होना मुश्किल होता है.. ग्राउंड फ्लोर का फर्श भी बर्फ सा लग रहा था। उसे चाय की तलब लगी। वो किचन में घुस गया.. फर्स्ट फ्लोर पर हलचल हुई.. वो चाय बनाने में मशगूल था.. लगा कोई ऊपर के टॉयलेट में है.. मकान की बनावट कुछ ऐसे थी कि ऊपर कुछ भी हो नीचे पता चल ही जाता था.. चूड़ी , पायल की आवाजों से उसने अंदाजा लगा लिया कि रात के दो बजे ऊपर कौन जगा है.. चाय का कप लेकर वो अपने बिस्तर पर आया तो नींद आंखों से दूर थी.. वो सोने की कोशिश में पंखें को घूरने लगा.. लेकिन पंखे की तरह उसकी कल्पनाएं भी रुकी हुई थीं.. ऊपर फिर खटखट हुई और उन्हीं आवाजों के साथ वो अपनी फैंटेसी को कमरे की दीवारों के कैनवास पर उकेरने लगा...   22-01-2013

KHATO KI AAWAJAHI

मानवी दुनिया को सुरक्षित करने के बहाने जब प्रेम , खुशी और गम जताने वाले शब्द फिल्टर होने लगे तो सात समंदर पार से उसने आभासी दुनिया में सावर्जनिक रूप से प्रेम जताना छोड़ दिया , वो जानता था कि जासूसों की गिद्ध नजर से उसकी निजता बच नहीं पाएगी। उसने आभासी दुनिया से विदा ले ली .. और अपने महबूब के लिए खत लिखना शुरू किया .. इस तरह प्रेम में भीगे शब्दों को सहेजे खतों की आवाजाही बढ़ गई ... 22-01-2013

JULY KI EK RAT KE BAD

21वीं सदी की प्रेम कहानियों को उलट के यानि आखिर से पढ़ना शुरू करो, तुम पाओगे कि हर कहानी का अंत सुखद है। ........................................................................... वो लिखता कम, काटता ज्यादा है। ........................................................................... लड़का: तुमसे बात करने में कोई फायदा नहीं है शायद! लड़की: फायदा सोच के आए थे? बनिए हो गए हो? लड़का: चलें ? लड़की: इसी में फायदा लग रहा होगा? लड़का: ऎसा तो नहीं है! लड़की: जाने दो खैर, ऑय विल पे फॉर कॉफी, ये नुकसान मैं भुगत लूंगी, तुम इतने फायदे में रहो! (जुलाई की एक रात) ......................................................................... "एक दिन में पहचान तो नहीं बदल जाती, रिश्ते तो खत्म नहीं हो जाते" (जुलाई की एक रात "बीतने" के बाद यही याद रहा बस) .......................................................... ...आजकल की कहानियां करण जौहर की फिल्मों की तरह डिजायनर ज्यादा है, कथ्य के मामले बेहद कमजोर। ......................................................

SHORT STORY: मेरी दुनिया की औरतें..

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गांव में बाढ़ आई थी..एक ही नाव पर..गोइठा, बकरी के बच्चे..दही बेचने वालियों के दौरे..हिंदू-मुस्लिम, औरत-मर्द सब एक साथ..सुबह का वक्त था..हवा तेज थी..डेंगी नाव पर उछल रहा बकरी का बच्चा बाढ़ के गहरे पानी में गिर गया..हाय राम, हाय अल्ला..सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे..अचानक वो अपने कपड़े खोलकर फेंकने लगी..बोली, मैं उसे मरने नहीं दूंगी और बिना कुछ सोचे कूद गई..सब अवाक थे..मैंने कहा, ऐसी हैं मेरी दुनिया की औरतें.. 02-07-2013 

चाय का एक कप

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courtesy_Google हर सुबह तुम्हें अपने हाथों की चाय पिलाना और बगल वाली खाली कुर्सी पर तुम्हारा इंतजार करना छूट गया है. और सुबह सुबह तुम्हारे भीगे बालों से टपकती उन बूंदों के बहाने तुम्हें छूना भी.. उबासियों के साथ महसूस करता हूं कि ढेर सारे लोगों से बेहतर चाय बनाने का नुस्खा मेरे पास है. और ये भी कि मैं खाना बनाने की बेस्टसेलर किताबें लिख सकता हूं. हमारे दरम्यान हजारों किलोमीटर की दूरी पनप आई है और इस दौरान मैंने हजारों कप चाय पी होगी. लेकिन उस स्वाद और मजे का अनुभव ना हुआ. जो तुम्हारे साथ बैठकर पीने में आता था. यहीं कमी चाय का एक कप बनाने के लिए मुझे बेचैन कर रही है. बिना तुम्हारे किचन के. लेकिन क्या वाकई मैं चाय के एक कप के लिए बेचैन हूं या तुम्हारे साथ मिलने वाले उस स्वाद और आनंद के लिए.. 12.06.2013

SHORT STORY: कुलटा और खनगीन

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बबुआन लोगों की दबंगई का प्रतिरोध ना कर पाना उसकी मजबूरी थीं या कुछ और. लेकिन नील टीनोपाल में रंगे कुर्तों वाले बबुआनों में से कौन जनेऊ पहनता है और कौन नहीं वो गिन के बता देती. यूं भी मुहल्ले की कथित सभ्य औरतें उसे कुलटा और खनगीन जैसे शब्दों से नवाज चुकी थी. और उसे अपवाद मान पूरा गांव दूध का धुला बनता. खेती हमेशा से घाटे का सौदा रही है. वो शहर क्या गई..बस्ती में बलात्कार, छेड़छाड़ और जबरदस्ती का ग्राफ बढ़ गया. झक सफेद कुर्तों पर अब नीले धब्बे उग आए थे. 

SHORT STORY: जो था..मधुमास था.

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अगली सुबह जब वह अपने पुराने कुर्ते में बटन टांक रहा था. दरवाजे पर दस्तक हुई..उसने आवाज दी..खुला है..और जब वह आई तो आती गई..बटन, धागे और सुई एक दूसरे के सहारे उलझे थे. उसने करीने से सुई थामा और बटन टांकने लगी..वो देखता रहा..हवा में घुल रहे प्रेम में डूबता रहा. उसके हाथ उतावले थे अपनी प्रेयसी के चेहरे को थामने के लिए..लेकिन उसने अपनी अंगुलियों को झिड़क दिया..और जब प्रेयसी ने धागे को तोड़ने के लिए कैंची मांगने के बजाय..धागे को ही अपने होंठो तक ले गई...तो उसके सीने में एक चुभन सी उठी और फिर क्या..जो था..मधुमास था. 26.04.2013

SHORT STORY (लघु कथा) मां की दुआओं में असर होता है.

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गलियों, छज्जों और खिड़कियों की खाक छानने के बाद भी अमूमन दिन में एकाध बार ही उसके दर्शन हो पाते,     उस दिन वह अपनी मां के साथ आयी, कुएं की देहरी पर मैं उसकी राह देख रहा था। पूजा करने के बाद प्रसाद देने के बहाने वह मेरे पास आई..मैंने पूछा, क्या मांगा, बोली, तुम्हारी सलामती और साथ। तुम्हारी मां ने क्या मांगा, घर, वर और हजारों खुशियां..उसने प्रसाद देने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कानों में कहा, मेरी शादी की बात चल रही है..मेरी आंखे उसके चेहरे पर ठहर गई..अंगुलियां, उसकी अंगुलियों से उलझ गई...मैं उसे खोने के डर में डूबता चला गया..दूर कहीं अंतर्मन में गूंज रहा था। मां की दुआओं में असर होता है...

SHORT STORY (लघु कथा): बेदाग रोटियां

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तवे से उतरती रोटियों पर जलने की कोई चित्ती ना थीं, मैंने जला हुआ सरकंडा उठाया और हर रोटी को टीका लगा दिया। इससे पहले कि वो कुछ कहती..मैं खुद ही बोल पड़ा, सबमें तुम्हारा अक्स नजर आता है..मैं नहीं चाहता इन बेदाग रोटियों को नजर लग जाएं.. 17.02.2013

SHORT STORY; ALIA

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Courtesy_Google 12 घंटे कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखे गड़ाने के बाद रोड किनारे खड़े अशोक के पेड़ों की पत्तियों को, सुहानी हवा के साथ झूमते देखना, आंखों के लिए सुकुन भरा था। चांदनी रात अपने शबाब पर थी और घड़ी की सुइयां एक दूसरे को आलिंगन कर रही थीं। जवां रात के आगोश में सड़कों पर चहलकदमी करना रुमानी भरा था। मैं कभी आसमां की ओर देखता, तो कभी मकानों की मुंडेर पर टिमटिमाते छोटे छोटे बल्बों को चिढ़ाता..तीन बंटा तीन सौ तीन, सब्जी मंडी से होते हुए जब मैं अपने आशियाने की चौखट पर पहुंचा, तो चारों तरफ सन्नाटा था। चांद, ऊंची दीवारों की ओट में छुप गया था और याद शहर का वो मोहल्ला लंबे-लंबे खर्राटे भर रहा था। एक दो बार कुत्तों के भौंकने की आवाजें भी सुनाई दी..जो कहीं अंधेरे में गुम हो गई..मैंने दरवाजा खटखटाया..कोई जवाब तो नहीं मिला..लेकिन दरवाजा खुल गया। ओह.. तो मिस आलिया सो गई हैं..और वो भी मेरे ही बिस्तर पे..क्या बात है...मैंने बैग पटका और आलिया को जगाने के लिए आवाज दी..आलिया, उठो यार, आज तो तुम बहुत जल्दी सो गई...डिनर कर लिया...आज पत्ते नहीं खेलोगी क्या...मैं यूं ही आवाज लगाता रहा..लेकिन आलिय

कहानीः मुन्ना बो

ये कहानी लिखने का मेरा मकसद उस खेतिहर मजदूर महिला की स्थिति को बयान करना था। जिसे कई बीघा खेतों के मालिक , स्वयंभू राजाधिराज अपनी उपभोग की वस्तु समझते थे.... राम प्रसाद के तीसरे बेटे की शादी में मुन्ना बो जमकर नाचीं। गांव के बैंड बाजे में उस समय नागिन धुन खूब चलन में था। बाजे वालों की टिरटिराती धुनों पर उसके बदन के लोच ने मुहल्ले के पहलवानों का चैन नोंच लिया। दरअसल मुन्ना बो पहली बार गांव वालों के सामने आई थी , अलहदा तरीके से बिना लाज शर्म के बाजे में नाचते हुए और उनका इस तरह सबके सामने आना खुले आकाश में लपकती बिजली की तरह था। हालांकि रामप्रसाद के तीसरे बेटे की शादी थी , इसलिए  दूल्हे का श्रृंगार देखने में भी व्यस्त थे। लेकिन परछन खत्म होते ही सबकी निगाहें मुन्ना बो पर टिक गई। तराशे हुए नैन नक्श और चम्पई रंग वाली मुन्ना बो की अल्हड़ चाल को देखकर मुहल्ले के छोकरों और मर्दों के बदन में सांप लोटने लगा। बिना संकोच किए वह किसी से भी बात कर सकती थी। यह उसके व्यक्तित्व की खासियत थी या कमजोरी यह खुद उसे भी मालूम नहीं था। तीसरे भाई की शादी के बाद मुन्ना पहली बार पंजाब से लौटे थे। दरअ

हजरात, ये मनाली और शिमला नहीं, गुलाबी शहर है।

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इससे पहले कि आप कोई कयास लगाए। मैं स्पष्ट कर दूं कि ये तस्वीरें किसी स्वप्निले शहर की नहीं हैं। ना ही ये शिमला और मनाली है। पहाड़ों के साए से तीसरी निगाह में कैद इन तस्वीरों पर बादलों की छाया हैं। गुलाबी शहर जयपुर का मौसम इन दिनों बारिश और बादलों के कहकहे से गुलजार हैं।  अरब सागर के दरिया से उठा मानसून भादो के पखवाड़े में नाहरगढ़ की पहाडिय़ों पर बादलों के स्वरुप में आराम फरमा रहा हैं। लिहाजा पिछले दस दिनों से यहां रिमझिम बारिश का दौर जारी हैं। किले, इमारतें और पैलेस नहा धोकर मुस्कुरा रहे हैं अपने मेहमानों के स्वागत में, तो पहाडिय़ों ने हरियाली की हल्की चादर ओढ़ ली हैं। आपने सुना होगा, भादों की रात बड़ी डरावनी होती हैं? लेकिन मैं नहीं मानता, क्योंकि गुलाबी शहर में भादो के दिन और रात मौसम के गुलाबीपन में भीगे हुए हैं। आपने शरद, शिशिर और बसंत में भले ही गुलाबी शहर को आंखों भर निहारा हो। लेकिन वर्षा ऋतु में इसे देखना मादकता भरा हैं। जब आपकी आंखें पहाड़ों पर बैठे बादलों से टकरा जाए.... सभी फोटोः मनोज श्रेष्ठ

Short Story: निकालो.. देख क्या रहे हो

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शाम का समय था। हल्की बरसात हुई थी, लेकिन अब भी आसमान में बादल घिरे हुए थे। वह उसे देखने की चाहत लिए अपने घर से निकला। उसे यकीन था वह अपने बगीचे में होगी। बेचैन सा वह तेज कदमों से चलने लगा, दो कदम चलने के बाद हल्की सी दौड़ लगा लेता। ताकि जल्दी पहुंचा जा सके। उसने दूर से ही देखा कि बगीचे के झुरमुट में कोई खड़ा हैं। वह तेजी से बढ़ता गया। उसे पता ही नहीं चला कि वह कब उस बगीचे के पास आ गया। जहां बेर के पेड़ लगे थे। वो बगीचे के इस कोने से उस कोने तक टहलती मचल रही थी। कभी इस पेड़ पर देखती, कभी उस डाल पर, उसने ठिगने से अमरुद की डाली को उछलकर पकड़ना चाहा कि पैरों में बेर का कांटा चुभ पड़ा। वह रो पड़ी..आह करते हुए..कांटा निकालने की जगह कांटे को देखकर रोती रही। वह बगीचे को घेरने के लिए लगे काटों के बाड़ के समीप खड़ा था। कांटा चुभने से वह बैठ गई थी। इसलिए वह बाड़ के घेरे पर ही खड़ा हो गया, उसने देखा तो कुछ नहीं बोला, आंसू पोंछने लगी। मूक सहमति पाकर वह उसके समीप गया। लेकिन उसके पैरों को छूने की हिम्मत ना कर सका। यूं ही देखता रहा। उसने मासूमियत से कहा, कांटा चुभ गया है..उसने दे

Short Story गिलास का गिरना

उस छोटे से आशियाने में जगह बनाते हुए आज सारी चीजें अपनी जगह पर खड़ी थी। मानो उन्हें किसी के आने का पूर्वाभास हो। लेकिन उसका सेलफोन खामोश था। वह निराश मन से उठा और पानी पीने के लिए गिलास भरने लगा। अचानक मुड़ा कि गिलास उसके हाथों से उछलकर जमीन पर आ गिरा..चंद सेकेंडों में गिलास के साथ वह भी उछलने लगा..उसके अंर्तमन में उसके मां की आवाज गूंज रही थी। “ बेटा, जब भरा हुआ पानी का गिलास गिर जाए तो समझ लो , कोई आने को हैं ” । गिलास और उसके उछलने के बीच डोरबेल की घंटी आवाज दे रही थी मिलन के बंद दरवाजे को खोलने के लिए..

Short Story उफ्फ़

मुझे तुम्हारी आवाज से प्यार है। मैं जानता हूं कि तुम मुझे नापसंद करती हो। लेकिन तुम्हारी आवाज बहुत मासूम और दिल की अच्छी है। वह तुम्हारी तरह मुझे देखकर नफरत से उफ्फ़ नहीं करती हैं। हां, जब खामोश हो जाती हो तो वह तुम्हारे उफ्फ़ करने का इंतजार करती है। ताकि हल्के से खुले तुम्हारे लबों से निकलकर वह मेरे सीने से लिपट जाएं और तुम ये फैसला ना कर सको कि तुम्हें मुझसे नफरत करनी है या अपने ही उफ्फ़ से ?

एक कहानी जो सड़कों पर सुनी थी..

वह रात भर सड़कों पर लाठियां पीटने के साथ आवाज लगाता है, ताकि सभी चैन की नींद सो सके। लेकिन उसकी जिंदगी में चैन कहा था। चालीस साल पहले शादी के बाद वह अपनी बीबी के साथ इस शहर में आया था। कुछ कमाने, खाने और हंसी खुशी के साथ जीने.. लेकिन पूरे चालीस साल में कभी इतना नहीं कमा सका कि अपने घर लौट सके। वह दिन रात जागता रहा, दिन में रिक्शा चलाता और रात में शहर वालों को जागकर चैन की नींद सुलाता रहा। हालांकि महीने क े आखिर में उसे जागने की छोटी कीमत मिल जाती, लेकिन रंगीन कागज का टुकड़ा (जिसे रुपया कहा जाता है) उसके लिए घर जाने का टिकट नहीं बन पाया। पति-पत्नी जूझते रहे, हाथ पैर चलाते रहे ताकि घर लौटने के लिए पैसा जुटाया जा सके। इस बीच किसी सज्जन को उनकी कहानी पता चली और वो मदद करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शायद नियति को उनका घर लौटना मंजूर नहीं था। सालों से घर लौटने की राह देखते पति-पत्नी के चेहरे पर आई उम्मीद की लकीरें निराशा की छाई बन गई। पता चला कि उसकी बीबी को बच्चेदानी का कैंसर है। डॉक्टरों ने उसकी पत्नी को यात्रा करने से मना कर दिया। चालीस सालों से जो पैसे उन्होंने घर जाने क

वो शब्द, जो जुबां से निकले और असर छोड़ गए..

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कभी-कभी हम हम्माम में नंगे खड़े होते है. लेकिन नहा नहीं पाते.