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अक्तूबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Ghazipur Varanasi in pics in pics

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ढलती शाम में सड़क किनारे चूल्हे पर भुट्टा।।  आम, दाल और रोटी। एक पूर्वांचली का आम भोजन।। आम के फांके।। बहुतायत में परोसे गए। क्षुधा शांत करिए।। जीरे के तड़के वाली दाल।। पूर्वांचल की दाल कैफी आजमी को भी बेहद पसंद थी।। आम, नेनुआ और प्याज।। बाढ़ के बाद गंगा लौटती है तो जमीन सांस लेने लगती है और उसका स्वरुप ऐसा हो जाता है। जैसे प्रसव के बाद जनाना के उदर पर निशान।। धरती ने ओढ़ी धानी चुनरिया।। धान के खेत।। खेतों को देख मन लहलहा उठता है।  तपते सूरज की रोशनी में पाला खींच कबड्डी खेलते बच्चे।  दूसरे पाले में पढ़ाता खिलाड़ी और ध्यानमग्न नन्हा दर्शक। चलो क्षितिज के पार।। बाढ़ के बाद गाजीपुर में गंगा किनारे फैला दियारा।  सूरज की गर्मी में दूब पिघलने लगी है। कुछ ही दिनों में पिघल जाएगी। ऊंचे अरारो पर खेती अब थोड़ी सी बची है।  वाह.. मन हरियर हो गया। ऐसे ही खेतों में धामन लोटती और किसान का सीना फूल के चौड़ा हो जाता है।  ऐ बदरा.. अपने संग हमें भी लेते चलो।  बारिशों के बाद

स्वच्छ भारत अभियान: दो अक्टूबर के बाद कौन झाड़ू लगाएगा?

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Image_Google हम भारतीयों को कचरा छुपाने की बड़ी गंदी आदत है. घर , गांव और शहर के किसी कोने में कचरा छुपा देते हैं. या फिर अगर कचरा द्रव अवस्था में हुआ तो गंगा , यमुना , गोमती या फिर किसी अमानीशाह नाले में बहा देते हैं. जैसे कचरे के निपटान की कोई और व्यवस्था ना हो. मजे की बात तो ये है कि देश में ही कचरे के निपटान की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है , जैसे सड़क और खुले में हगने वाले हजारों लोगों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है. द्रव अवस्था वाला कचरा नदी और नाले के पानी में मिल जाता है और वो फिर हमें कचरा नहीं दिखता , लोग उसे गंदा पानी कहने लगते हैं. जैसे दिल्ली के आने के बाद मैंने यमुना को देखकर कहा था , आह , यमुना जी कितनी गंदी हो गई है !   और तभी मेरे चचा जान ने तपाक से जवाब दिया , अबे , ये यमुना जी नहीं , नाला है.. नाला. मैं अवाक रह गया ? इस देश में सफाई को लेकर सब चिंतित है. लेकिन सवाल ये है कि झाड़ू लगाने के बाद कचरे का निपटान कैसे होगा. क्या कचरा निपटान के नाम पर दिल्ली के लोग यूपी की सीमा पर कचरे का पहाड़ बनाएंगे या यमुना में बहाते रहेंगे. जरा राजधानी के बाहर निकलिए.