गोरखनाथ का दर्शन और योगी आदित्यनाथ

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नाथ पंथ के प्रणेता गोरखनाथ जिस दर्शन को स्थापित कर रहे थे वह हिन्दू धर्म से भिन्न, जोगी दर्शन था. वह सनातनी पाखंडों से अलग, समाज के अस्पृश्य लोगों के योग साधना पर आधारित था. वह हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के खिलाफ था, वो मूर्ति पूजा के भी खिलाफ था और बहुत हद तक सूफीवाद के करीब था.

गोरख कहते हैं- हिन्दू ध्यावै देहुरा मुसलमान मसीत/जोगी ध्यावै परमपद जहाँ देहुरा न मसीत.. अर्थात हिन्दू देवालय में ध्यान करते हैं, मुसलमान मसजिद में किन्तु योगी उस परमपद का ध्यान करते हैं, जहाँ न मंदिर है और न मस्जिद.

योगी के लिए देवालय, मठ, मस्जिद और इनके अतिरिक्त भी, सब जगह परमात्मा का सहज बोध सुलभ होता है. कबीर पंथ और नाथ पंथ में बहुत हद तक समानता है.

कबीर कहते हैं- पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का.. गोरखनाथ कहते हैं- वेदे न सास्त्रे कतेब न कुरांने पुस्तके न बांच्या जाई/ते पद जांनां बिरला जोगी और दुनी सब धंधे लाई.

कबीर की उलटबांसिया भी नाथ पंथ से ली गयी हैं. गोरखनाथ कहते हैं- हिन्दू आषे राम को मुसलमान षुदाइ/ जोगी आषे अलष को तहां राम अछे न षुदाइ. ( ष को ख की तरह पढ़ें)

अर्थात हिन्दू राम का ध्यान करते हैं और मुसलमान खुदा का. योगी अलक्ष्य के नाम का आख्यान करते हैं, वहां न राम है न खुदा.

नाथ पंथ का वाहक पसमांदा मुसलमानों का एक बड़ा तबका रहा है जो आज भी लाखों की संख्या में है. सीतापुर में 40 लाख जागा मुसलमान हैं. मैं एक ऐसे ही गाँव का सर्वे करा रहा हूँ जहाँ सैकड़ों की संख्या में जोगी हैं.

अब गोरखनाथ पीठ के योगी आदित्यनाथ को कम से कम जोगी (योगी) परम्परा के मूल दर्शन का अनुशरण करते हुए, सनातनी हिन्दू धर्म का रहनुमा बनने की होड़ में जहर उगलने के बजाय, नाथ सम्प्रदाय के सबसे बड़े वाहक, पसमांदा मुसलमानों को अपनी बिरादर का मानते हुए, उनके साथ खड़ा होना चाहिए अन्यथा अपने नाम के आगे योगी लिखना छोड़ देना चाहिए.

नाथ सम्प्रदाय के असली वारिस पसमांदा मुसलमान ही है. गोरख पीठ को पसमांदा मुसलमानों की मदद में आगे आना चाहिए या आज गोरखनाथ पीठ के जोगी जी को एक बार इस तथ्य पर जरूर विचार करना चाहिए की अगर उन्हें हिन्दू कट्टरवादिता की राह पर चलना है तो जोगी परम्परा से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए.

जोगी परंपरा में सनातन हिन्दू धर्म नहीं आता. उसमें कट्टरता का कोई स्थान नहीं. इस पंथ में आता है दलित और पसमांदा मुसलमान की धर्महीन साधना जो प्रेम की पराकाष्ठा तक जाती है. वे ज्ञान को अंतिम सत्य मानते हैं. वह सभी आडम्बरों को एक स्वर से फटकारते हैं. यह बात मैं नहीं कह रहा, आदिनाथ के नाती, मक्षेन्द्र नाथ के पुत्र गोरखनाथ ने ही कही है- देखें- 

काजी मुलां कुराण लगाया, ब्रह्म लगाया बेदं/ कापड़ी सन्यासी तीरथ भ्रमाया न पाया न्रिबाण पद का भेदं. या वे ललकारते हैं- पत्थर के मंदिर में पत्थर के देवता की प्रतिष्ठा करते हो. फिर तुम्हारे अन्दर स्नेह का प्रस्फुटन कैसे होगा? कैसे बोलों पंडिता देव कौनों ठाईं.

आज जोगी जहर उगल रहे हैं. क्रोध और अहंकार से भरे हैं जब की गोरख कहते है- नाथ कहै तुम सुनहु रे अवधू दिढ़ करि राषहु चीया/काम क्रोध अहंकार निबारौ तौ सबै दिसंतर कीया.

योगी जी अगर इसी तरह जहर उगलते रहे तो संभव है जोगी बिरादरी भी कट्टर मुसलमानों के प्रभाव में आकर, जोगी संस्कृति से स्वंय को अलग कर ले और तब सबसे ज्यादा नुकसान नाथ पंथ का ही होगा.

 Subhash Chandra Kushwaha के फेसबुक पोस्ट से साभार

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