संदेश

मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुक रिव्यू : भारत के बनने की गवाही देते महान भाषण

चित्र
भारत  को आजाद हुए 65 बरस से ज्यादा हो गए है और हमारे देश में राजनीति के मुद्दे अब भी 65 बरस वाले ही है या उससे भी उम्रदराज पुरखों वाले. 1885 में एलेन ऑक्टेवियन ह्यूम ने कांग्रेस की पहली बैठक बुलाई और उसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक संघर्ष के लिए मुसलमानों को अपने साथ लेने की कोशिश होती है. इस बीच सर सैयद अहमद खां फ्रेम में आते हैं और मार्च 1888 में कांग्रेस पर मुसलमानों को बरगलाने का आरोप लगाकर वे मेरठ में भाषण देते हैं. इसी के साथ हिंदू-मुस्लिम राजनीति का श्रीगणेश हो जाता है. उम्मीद  है 2014 के आम चुनाव के मुद्दे आपके मनः मस्तिष्क से उतरे नहीं होंगे. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों को सुन लीजिए पता चल जाएगा हमारे देश में राजनीति की गाड़ी कितनी आगे बढ़ी है. हिंदुस्तान की राजनीति कितना आगे बढ़ पाई है ये बताती है प्रभात प्रकाशन से 2012 में प्रकाशित हुई किताब भारत के महान भाषण. इस किताब का संपादन रुद्रांक्षु मुखर्जी ने किया है. 1885  से लेकर 2007 के बीच सौ वर्ष से ज्यादा के समय आयाम में संकलित किए गए भाषणों का संकलन है ये किताब. कुल 49 भाषणों को दो हिस्सों में विभ

बनारस डायरी: काशी के बदले माहौल में फंस गई है मोदी की जीत

चित्र
Courtesy_Harendra Yadav   काशी के पांच दृश्य  दृश्य-1  गोदौलिया चौराहे के पास बीजेपी समर्थकों का हुजूम. भगवा रंग की छतरी, पर्चे, पैम्फलेट. झंडे और तमाम चुनाव समाग्री, चौराहे से लोग किसी तरह निकल रहे. भीड़ बढती जा रही है. मोदी के समर्थन में लगातार नारे उछाले जा रहे हैं. एक तरह सड़क के दाहिने कोने में आम आदमी पार्टी का एक समर्थक अपने चार पांच आदमियों के साथ हाथों में झाड़ू लिए मोर्चा संभाले हुए. लेकिन उसकी आवाज बीजेपी के नारों से दब जा रही है. हालांकि वह लगातार हवा में झाड़ू लहरा रहा है. इस बीच अमित शाह कार में चढ़कर आते है और गोदौलिया भगवा रंग में डूब जाता है. दृश्य-2 दशाश्वमेध घाट, अगर बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को मंजूरी मिल गई होती, तो वे आज गंगा आरती में शरीक हो रहे होते, और ये आरती रोज की तरह ना होकर हाईप्रोफाइल होती. सुरक्षा के तमाम उपाय होते और साधारण लोग चौक के पास ना जा पाते.. बहरहाल नावों पर सवार होकर लोग आरती में शामिल हुए और रोज की तरह गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा दर्शाई. Assi Ghat_Benaras_courtesy_Harendra Yadav दृश्य-3 कुमार स्वामी घाट, सीढ़ियों से

बुक रिव्यूः गुलज़ार का पहाड़े गिनना.. पन्द्रह पांच पचहत्तर

चित्र
Courtesy_google एक स्कूल था जो ढह गया था. मलबे पर छोटे छोटे बच्चे टाट पर बैठे पहाड़े गिन रहे थे. पन्द्रह एकम पंद्रह..पंद्रह दूनी तीस.... ‘पन्द्रह पांच पचहत्तर’. बाजुएं झटक झटक कर बच्चे पहाड़े गिन रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे कविता पढ़ रहे हो. वाणी प्रकाशन ने 2010 में ‘पन्द्रह पांच पचहत्तर’ नाम से गुलजार की कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया है. इस संग्रह में पन्द्रह पाठ है और हर पाठ में पांच कविताएं. गुलज़ार का फलक बहुत बड़ा है. जिसमें वो पूरी कायनात समेट लेते हैं. वो सौरमंडल का चक्कर काट आते हैं तो इराक से लेकर अफगानिस्तान तक की खाक छानते हैं. वो इराक की खानम की गवाही देते हैं तो गुजरात के उन मकानों का भी जो मलबे का ढेर बन गए. देखिए... कितने मासूमों के घर दंगों में जलकर मलबे का ढेर हुए जाते हैं गुजरात में ...और ये है, एक टूटे हुए रोज़न में इसे तिनके सजाने की पड़ी है! बाजू एक जुलाहे का, हिलता है अब तक कांप रहा है या शायद कुछ कात रहा है टांग है एक खिलाड़ी की...रन आउट हुआ है. घर तक दौड़ते दौड़ते राह में मारा गया. कहते है दीवारों के कान होते हैं लेकिन गुलजार इन दीवारों को जुब

बुक रिव्यू: इस्लाम की बुनियाद पर लोकतंत्र खड़ा करना चाहते हैं इमरान

चित्र
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इमरान खान की पहचान एक क्रिकेटर के तौर पर है. तेज गेंदबाजी का ककहरा जानने वाला छोटा बच्चा भी इमरान खान की बात करता है. लेकिन इमरान खान जब बचपन के दिनों में क्रिकेट खेलते थे, तो उनकी ख्वाहिश जन्नत में क्रिकेट खेलने की थी. वो परिवार के बड़ों से अक्सर ये सवाल पूछा करते थे कि ‘क्या मैं जन्नत में क्रिकेट खेल सकूंगा, क्या मैं वहां बंदूक चला सकूंगा.’ जन्नत में खेलने और बंदूक चलाने की बात उलझन पैदा करती है और इमरान की राजनीति भी. क्रिकेट के मैदान से निकलकर अस्पताल के गलियारे से राजनीति में उतरे इमरान खान के जीवन की ये पहली तस्वीर है.  इमरान की कल्पना में एक ऐसा लोकतंत्र है जिसकी बुनियाद इस्लाम पर टिकी है. या फिर एक ऐसा लोकतंत्र जिसकी फुनगियों पर इस्लाम का परचम लहरा रहा हो. लेकिन इमरान अपने इस इस्लामी लोकतंत्र को परिभाषित कर पाने में असफल नजर आते हैं. इस्लाम और लोकतंत्र दो अलग चीजें हैं. इस्लाम जहां पैगंबर की बात करता है. वहीं लोकतंत्र में लोग महत्वपूर्ण होते हैं. उनके चुनाव, अपनी बात रखने की आजादी, आलोचना और अपने तरीके से जीने की मर्जी. लोग अपने हिसाब से प