संदेश

दिसंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

19 बरस पहले भी एक भंवरी के साथ हुआ था गैंग रेप, आज भी लड़ रही है न्याय के लिए

चित्र
जयपुर. भंवरी देवी के कारण आज पूरी राजस्थान सरकार मुसीबत में है तो बरसों पहले एक और भंवरी देवी के कारण राजस्थान सरकार की पूरी दुनिया में बदनामी हो चुकी है। यह भंवरी देवी आज भी न्याय के लिए लड़ रही हैं। 19 साल पहले खुद पर हुए जुल्म के लिए भले ही भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला हो, लेकिन वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लगातार लड़ रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है। भंवरी कहती हैं, ‘भले ही कितने साल बीत गए हों, लेकिन मैं अंतिम सांस तक लड़ती रहूंगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अब और कोई महिला मेरी तरह न्याय के इंतजार में भटके। मैं तो बस इतना चाहती हूं इस तरह की दुर्घटना से आहत स्त्री को तुरंत न्याय मिले। सरकार कानून तो बहुत बनाती हे लेकिन उसका पालन भी करे। यदि पालन नहीं कर सकती, तो उसे कानून बनाना बंद कर देना चाहिए।’ भंवरी का बड़ा बेटा कई साल पहले अपनी पत्नी के साथ गांव छोड़कर चला गया, क्योंक

तुम्हारी दो आंखे..

हमें यूं छोड़कर तुम्हारा दूसरे शहर चले जाना जैसे हवामहल के झरोंखो पर किसी ने पर्दा डाल दिया हो मैं लाल बत्ती के उस पार बुत बना..ठिठका हूं ढूंढ़ते हुए तुम्हारी दो आंखे.. 16.12.2012

कमरे की बत्तियां

मेरी उदासियों का साया तुम पर ना हो. लो, मैंने कमरे की बत्तियां बुझा दी.. तुम्हारी अपनी महफिलों में.. गैरों की आवाजाही है..  मेरे आने से.. जलवों की रोशनाई कम हुई..  ये बताओ.. उदास रातों के लिए  तुमने कीमत क्या चुकाई.. 16.12.2012

किसी को क्या परेशानी थी, जो, फूंक दी मेरी दुकान

किसी को क्या परेशानी थी मेरे बूढ़े बाप से जो, फूंक दी मेरी दुकान मेरा बाप जो कमजोर था, सीधा था  भट्ठी झोंका करता था अपने बच्चों का पेट पालने के लिए खेतों में काम आने वाले औजार बनाता हंसिया, गड़ासी और खुरपी घरों में पंखे लटकाने के लिए हुक और चिरई काड़ा किसी को क्या परेशानी थी जो लोगों ने फूंक दी हमारी दुकान चुरा ले गए हथौड़े और सड़सी वो, निहाय जिस पर मेरा बाप लोहे के औजार गढ़ता था उम्र के आठवें दशक में किसी को क्या परेशानी थी जो फूंक दी मेरी दुकान मैं जानना चाहता हूं क्या, जमीदारों और सामंतों के इलाके में भट्ठी झोंकना गुनाह है जिनके पास हजारों एकड़ जमीनें है वहीं आते थे, हंसिया में दांत निकलवाने लेकिन 8 रूपए देने में उन्हें पसीने आते थे उन्हें लगता था मेरा बाप ज्यादा मांग रहा अपनी मेहनत का दाम भट्ठी की आग में झुलसने का हक आखिर क्या वजह थी जो, लोगों ने फूंक दी हमारी दुकान मेरा बाप मुझसे कहता है ऐसी बात नहीं थी बेटा मैं किसी से क्यों झगड़ा करूंगा हमें पेट जिलाने के लिए दो रुपए कमाने हैं हमें किसी से क्यों शिकायत है लेकिन हम जानना चाहते है क्यों लोगों ने

रुपयों की आग जलाता हूं..

जब, घुप्प अंधेरी जिंदगी में रुपयों की आग जलाता हूं.. तुम्हारी मुहब्बत पिघलती हैं कुछ अपने लिए...कुछ मेरे लिए.. माथे पर उभरे पसीने की तरह.. तुम जलती हो.. हमें आजमाने के लिए 11.12.2012

एफडीआई का जिन्न

एफडीआई पर चल रही ताजा बहस पर अगर व्यावहारिक बातें की जाए तो इसे समझना बेहद आसान हो जाता हैं। सबसे पहले मैं इस ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा कि मुल्क के (70 प्रतिशत से ज्यादा) लोगों की आय 20 रुपए से कम हैं या 20 रुपए रोजाना पर अपनी दिनचर्या गुजारते हैं। ये दावा मैं नहीं, बल्कि सरकारी तौर पर पेश एक रिपोर्ट करती हैं। गूगल बाबा से अगर आप पूछे तो आपको ढेर सारी जानकारियां मिल जाएंगी। अब  सवाल ये उठता है कि वॉलमार्ट, कारफूर और टेस्को के स्टोर में 20 में रुपए का क्या मिलता हैं। शायद ये देश के वित्त मंत्री को पता हो। मुझे तो नहीं है। क्योंकि जिन बस्तियों में मेरे मां बाप रहते है वहां के लोगों की आय रोजाना बीस रुपए ही हैं। अब, मैं जहां रहता हूं वहां सब्जी की एक ही दुकान है। जो रात के दस बजे के बाद बंद हो जाती हैं। यानी इससे पहले आप सब्जी नहीं  खरीद पाए तो फिर अगली सुबह ही सब्जी नसीब होगी। जयपुर शहर का ये इलाका मालवीय नगर के नाम से जाना जाता हैं और इस चौराहे पर लगने वाले मार्केट को सेंटर प्वाइंट मानकर 1 किलोमीटर त्रिज्या का वृत्त खींच दूं तो इतनी दूरी में कोई और सब्जी की दुकान ua,  इसकी जानकारी मेर