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तुम्हारे साथ बैठे हुए...

मैं जिसे छोड़ आया था कहीं और.. वो यहां मौजूद रहता है तुम्हारे होते हुए भी जब मैं तुम्हारे संग तन्हा होता हूं मुझे अपने फैसले पर विस्मय होता है चार लोगों के साथ बैठे हुए तन्हा मिलता हूं.. मेरे पास कहानियां है..अपनी लेकिन सुनने को कोई तैयार नहीं ना तुम..ना कोई और जिनके नाम से जमाना मुझे पहचानता है क्योंकि कहानियों में तुम भी हो मौजूद लोगों के किस्से है और मैं भी हूं.. लेकिन मेरे अपने ?..जिन्हें जमाना मेरा कहता है सवाल वाजिब है..ये मेरे अपने दरअसल, मेरे अनुभव है..सुख दुख की थाली में बंटे हुए तुम चुन लो.. अपनी मर्जी से अपनी थाली जो तुम्हें पसंद हो अपने स्वाद के मुताबिक जो तुम चाहो.. शायद मैं तुम्हें मिल जाऊं नमकीन आंसू की तरह.. खुशी की मिठास लिए फिर भी मैं तन्हा रहूंगा तुम्हारे चुनने के बावजूद क्योंकि तुमने अपनी थाली चुनी है मुझे नहीं.. खुशी और गम से भरी मेरी कहानियां है जख्म और कोमल एहसासों से बुनी हुई इन्हें मैं अलग नहीं कर सकता मैं अब भी तन्हा हूं.. तुम्हारी खाने की टेबल पर तुम्हारे साथ बैठे हुए...

कहानीः मुन्ना बो

ये कहानी लिखने का मेरा मकसद उस खेतिहर मजदूर महिला की स्थिति को बयान करना था। जिसे कई बीघा खेतों के मालिक , स्वयंभू राजाधिराज अपनी उपभोग की वस्तु समझते थे.... राम प्रसाद के तीसरे बेटे की शादी में मुन्ना बो जमकर नाचीं। गांव के बैंड बाजे में उस समय नागिन धुन खूब चलन में था। बाजे वालों की टिरटिराती धुनों पर उसके बदन के लोच ने मुहल्ले के पहलवानों का चैन नोंच लिया। दरअसल मुन्ना बो पहली बार गांव वालों के सामने आई थी , अलहदा तरीके से बिना लाज शर्म के बाजे में नाचते हुए और उनका इस तरह सबके सामने आना खुले आकाश में लपकती बिजली की तरह था। हालांकि रामप्रसाद के तीसरे बेटे की शादी थी , इसलिए  दूल्हे का श्रृंगार देखने में भी व्यस्त थे। लेकिन परछन खत्म होते ही सबकी निगाहें मुन्ना बो पर टिक गई। तराशे हुए नैन नक्श और चम्पई रंग वाली मुन्ना बो की अल्हड़ चाल को देखकर मुहल्ले के छोकरों और मर्दों के बदन में सांप लोटने लगा। बिना संकोच किए वह किसी से भी बात कर सकती थी। यह उसके व्यक्तित्व की खासियत थी या कमजोरी यह खुद उसे भी मालूम नहीं था। तीसरे भाई की शादी के बाद मुन्ना पहली बार पंजाब से लौटे थे। दरअ

हजरात, ये मनाली और शिमला नहीं, गुलाबी शहर है।

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इससे पहले कि आप कोई कयास लगाए। मैं स्पष्ट कर दूं कि ये तस्वीरें किसी स्वप्निले शहर की नहीं हैं। ना ही ये शिमला और मनाली है। पहाड़ों के साए से तीसरी निगाह में कैद इन तस्वीरों पर बादलों की छाया हैं। गुलाबी शहर जयपुर का मौसम इन दिनों बारिश और बादलों के कहकहे से गुलजार हैं।  अरब सागर के दरिया से उठा मानसून भादो के पखवाड़े में नाहरगढ़ की पहाडिय़ों पर बादलों के स्वरुप में आराम फरमा रहा हैं। लिहाजा पिछले दस दिनों से यहां रिमझिम बारिश का दौर जारी हैं। किले, इमारतें और पैलेस नहा धोकर मुस्कुरा रहे हैं अपने मेहमानों के स्वागत में, तो पहाडिय़ों ने हरियाली की हल्की चादर ओढ़ ली हैं। आपने सुना होगा, भादों की रात बड़ी डरावनी होती हैं? लेकिन मैं नहीं मानता, क्योंकि गुलाबी शहर में भादो के दिन और रात मौसम के गुलाबीपन में भीगे हुए हैं। आपने शरद, शिशिर और बसंत में भले ही गुलाबी शहर को आंखों भर निहारा हो। लेकिन वर्षा ऋतु में इसे देखना मादकता भरा हैं। जब आपकी आंखें पहाड़ों पर बैठे बादलों से टकरा जाए.... सभी फोटोः मनोज श्रेष्ठ

They Ask for Bread वे रोटी मांग रहे हैं

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इलाके के विकास के लिए सरकार ने दी है परमिशन जमीन की खुदाई के लिए जंगल को काटने जल को सुखाने के लिए ताकि विकास का पहिया तेजी से घूम सकें इलाके में विकास हो सुरसा के मुंह की तरह सरकार को लोगों की परवाह नहीं वे मर रहे है भूख से, गरीबी से सरकार की गोलियों से क्योंकि वे रोटी मांग रहे हैं चिल्लाते और चीखते हुए क्योंकि उनके पेट में आग लगी हैं सरकार, संसद में प्रस्ताव पास कर रही हैं दो रुपए किलो अनाज देंगे बारहों महीने, ताकि कोई भूखा ना सोए सरकार अपने कानों पर कनटोपा लगाए है अपने कारिंदों की चापलूसी सुनने के लिए उन्हें चीखते लोगों की आवाजें सुनाई नहीं देती। सरकार खुश है, भूखों के फटे कपड़े डिजायनर बनाने की बात करते है इलाके में शॉपिंग मॉल खोलने की घोषणा करते है उन्हें भूख दिखाई नहीं देती अनजानी बीमारियों से मर रहे लोगों की उन्हें परवाह नहीं, सैंकड़ों मासूम मर जाते है अपनी जननी की गोद में खामोश.. सरकार बेताब है फटे कपड़ों पर वादों के अस्तर लगाने को चीखती जुबानों पर ताले लगाने को हर गांव को बस्तर बनाने को नेता, सेना और शातिर गिद्धों की निगाह में सबसे बड

Controversy is Good for us: Gaurav Panjvani कंट्रोवर्सी होगी तो यार, अच्छा ही होगा

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कंट्रोवर्सी होगी तो यार, अच्छा ही होगा। फिल्म का प्रॉफिट बढ़ेगा। अमृतसर में हमें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। लोगों ने कहा कि यह फिल्म हमारी भारतीय संस्कृति के खिलाफ हैं। सेकंड मैरिज डॉट कॉम फिल्म के निर्देशक गौरव पंजवानी खुलकर बोलते हैं। शनिवार को अपनी फिल्म के प्रमोशन कार्यक्रम के लिए वे जयपुर में थे। दैनिक भास्कर डॉट कॉम के साथ एक विशेष इंटरव्यू में गौरव ने कहा कि यह फिल्म दो पैरलर फैमिली पर बेस्ड हैं। जिसमें एक बेटा अपने पिता को और एक बेटी अपनी मां को दूसरी शादी की सलाह देते है। दोनों यंगस्टर्स मिलते है और पैरेंट्स की शादी आपस में करवाने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन पैरेंट्स को मनाने के चक्कर में उनमें प्यार हो जाता हैं। मां पिता के एक होने पर दोनों यंगस्टर्स भाई बहन कहलाते हैं। लेकिन उनका प्यार भारतीय संस्कृति के आड़े आ जाता हैं। अमृतसर में लोगों ने इसी का विरोध किया। भारतीय संस्कृति की ऊंची दीवारों को लांघने की कोशिश करने वाले गौरव सेकंड मैरिज डॉट कॉम से पहले फेसपैक, एक्जाम फोबिया और कॉफी मेरी जान जैसी असरदार डॉक्यूमेंट्री फिल्मों से अच्छी खासी पहचान बटोर

रिपोर्टिंग का एक और मौका

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5 जुलाई को कवर की स्टोरी, अखबारी पन्नों पर बिना नाम के...

कैटवॉक कर रहे ब्वॉयज को चीयर किया गर्ल्स ने

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मैं क्या कहूं..खुद ही पढ़ लीजिए।

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Short Story: निकालो.. देख क्या रहे हो

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शाम का समय था। हल्की बरसात हुई थी, लेकिन अब भी आसमान में बादल घिरे हुए थे। वह उसे देखने की चाहत लिए अपने घर से निकला। उसे यकीन था वह अपने बगीचे में होगी। बेचैन सा वह तेज कदमों से चलने लगा, दो कदम चलने के बाद हल्की सी दौड़ लगा लेता। ताकि जल्दी पहुंचा जा सके। उसने दूर से ही देखा कि बगीचे के झुरमुट में कोई खड़ा हैं। वह तेजी से बढ़ता गया। उसे पता ही नहीं चला कि वह कब उस बगीचे के पास आ गया। जहां बेर के पेड़ लगे थे। वो बगीचे के इस कोने से उस कोने तक टहलती मचल रही थी। कभी इस पेड़ पर देखती, कभी उस डाल पर, उसने ठिगने से अमरुद की डाली को उछलकर पकड़ना चाहा कि पैरों में बेर का कांटा चुभ पड़ा। वह रो पड़ी..आह करते हुए..कांटा निकालने की जगह कांटे को देखकर रोती रही। वह बगीचे को घेरने के लिए लगे काटों के बाड़ के समीप खड़ा था। कांटा चुभने से वह बैठ गई थी। इसलिए वह बाड़ के घेरे पर ही खड़ा हो गया, उसने देखा तो कुछ नहीं बोला, आंसू पोंछने लगी। मूक सहमति पाकर वह उसके समीप गया। लेकिन उसके पैरों को छूने की हिम्मत ना कर सका। यूं ही देखता रहा। उसने मासूमियत से कहा, कांटा चुभ गया है..उसने दे

Short Story: क्यों हर बार राखी बंधवाकर रोने लगता हैं?

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अभी कुछ ही दिन पहले पता चला था कि दीदी को उनको पतिदेव ने गांजे के नशे में खूब मारा हैं और उनकी तबीयत खराब हैं। यह सुनकर मेरा तो खून खौल उठा। चूंकि घर से दूर था इसलिए फोन कर मां और पिता जी पर बरस पड़ा। मैं आ रहा हूं जीजा जी से निपटने। लेकिन मां ने फोन पर ही कहा, मैं तेरे पैर पड़ती हूं तू कुछ मत कहना उन्हें..तुझे मेरी कसम जो, तूने उसके ससुराल फोन किया। उसकी जिंदगी खराब हो जाएगी, घर उजड़ जाएगा। हो सकता है वह और भी मारने लगे उसे कि तूने अपने मां बाप को क्यों खबर की। हफ्ते भर भी नहीं बीता कि सावन चढ़ा और धान रोपने की तैयारी करते-करते राखी आ गई। हालांकि मां के मना करने के बाद मैंने दीदी को फोन नहीं किया। लेकिन अंदर ही अंदर से उस घटना को लेकर जलता रहा। आखिर जिस मां ने पैदा किया उसने कभी अपनी बेटी को छुआ भी नहीं तो फिर ये जी..जाजी कौन होते हैं। स्सालाल..नशेड़ी..जब खेतों की ओर जाता तो ऐसे ही बकते हुए रास्ता तय करता। मां भी पूछ बैठती क्या बात है आजकल बहुत गुस्से में रहता हैं? सावन का आखिरी दिन पहले से ही लोग हल्ला कर रहे हैं...कल रक्षाबंधन है..राखी है..राखी..ये शब्द सुनकर मेर