संदेश

जुलाई, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
चित्र
कुछ यूं भी नजर आते है हम अखबार के पन्नों पर...31 जुलाई 2012...वेब के लिए काम करते हुए अखबार के लिए रिपोर्टिंग..और बाइलाइन भी...इसे कहते है सोने पर सुहागा...

अटकना

चित्र
अंकुर जायसवाल आज इक कविता लिखने बैठा मैं, क्योंकि मैंने दो लाइनें सोचीं थी या कह लूं महसूस की थी कुछ दिनों से और सरलता से कहूँ तो जो कुछ भी महसूस किया था मैंने कुछ दिनों में वो उन दो लाइनों में था | तो आज सब कामों को निपटा कर लिखने बैठा मैं पर दिक्कत यह थी कि कविता तो दो लाइनों कि होगी नहीं, और शायरी करने मुझे आती नहीं फिर भी शुरू किया मैंने कविता को लिखना दो लाइनों का अंत लेकर चार लाइनों का छंद लिख दिया मैंने , अब इन चार लाइनों के साथ अंतिम दो लाइनों की दूरी को तय करने निकला और बीच में अटक सा गया मैं जैसे अभी इस कविता को आगे लिखने में अटक गया हूँ | यह ठीक वैसा ही अटकना है या उलझना है जैसे शुरू करते हैं हम सफर सपनों को पूरा करने का या सपनों को सच करने का पर उन दो पंक्तियों का सपना कभी असली पन्नों पर नहीं उतर पाता अटक जाते हैं हम चार पंक्तियों का काम कर के और फिर लिखने लगतें हैं एक और कविता   इस अटकने पर | और रह जाती हैं वह दो मूल पंक्तियाँ सपनों की तरह सपनों में......                 अंकुर जायसवाल

Short Story गिलास का गिरना

उस छोटे से आशियाने में जगह बनाते हुए आज सारी चीजें अपनी जगह पर खड़ी थी। मानो उन्हें किसी के आने का पूर्वाभास हो। लेकिन उसका सेलफोन खामोश था। वह निराश मन से उठा और पानी पीने के लिए गिलास भरने लगा। अचानक मुड़ा कि गिलास उसके हाथों से उछलकर जमीन पर आ गिरा..चंद सेकेंडों में गिलास के साथ वह भी उछलने लगा..उसके अंर्तमन में उसके मां की आवाज गूंज रही थी। “ बेटा, जब भरा हुआ पानी का गिलास गिर जाए तो समझ लो , कोई आने को हैं ” । गिलास और उसके उछलने के बीच डोरबेल की घंटी आवाज दे रही थी मिलन के बंद दरवाजे को खोलने के लिए..

Short Story उफ्फ़

मुझे तुम्हारी आवाज से प्यार है। मैं जानता हूं कि तुम मुझे नापसंद करती हो। लेकिन तुम्हारी आवाज बहुत मासूम और दिल की अच्छी है। वह तुम्हारी तरह मुझे देखकर नफरत से उफ्फ़ नहीं करती हैं। हां, जब खामोश हो जाती हो तो वह तुम्हारे उफ्फ़ करने का इंतजार करती है। ताकि हल्के से खुले तुम्हारे लबों से निकलकर वह मेरे सीने से लिपट जाएं और तुम ये फैसला ना कर सको कि तुम्हें मुझसे नफरत करनी है या अपने ही उफ्फ़ से ?

एक कहानी जो सड़कों पर सुनी थी..

वह रात भर सड़कों पर लाठियां पीटने के साथ आवाज लगाता है, ताकि सभी चैन की नींद सो सके। लेकिन उसकी जिंदगी में चैन कहा था। चालीस साल पहले शादी के बाद वह अपनी बीबी के साथ इस शहर में आया था। कुछ कमाने, खाने और हंसी खुशी के साथ जीने.. लेकिन पूरे चालीस साल में कभी इतना नहीं कमा सका कि अपने घर लौट सके। वह दिन रात जागता रहा, दिन में रिक्शा चलाता और रात में शहर वालों को जागकर चैन की नींद सुलाता रहा। हालांकि महीने क े आखिर में उसे जागने की छोटी कीमत मिल जाती, लेकिन रंगीन कागज का टुकड़ा (जिसे रुपया कहा जाता है) उसके लिए घर जाने का टिकट नहीं बन पाया। पति-पत्नी जूझते रहे, हाथ पैर चलाते रहे ताकि घर लौटने के लिए पैसा जुटाया जा सके। इस बीच किसी सज्जन को उनकी कहानी पता चली और वो मदद करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शायद नियति को उनका घर लौटना मंजूर नहीं था। सालों से घर लौटने की राह देखते पति-पत्नी के चेहरे पर आई उम्मीद की लकीरें निराशा की छाई बन गई। पता चला कि उसकी बीबी को बच्चेदानी का कैंसर है। डॉक्टरों ने उसकी पत्नी को यात्रा करने से मना कर दिया। चालीस सालों से जो पैसे उन्होंने घर जाने क

वो शब्द, जो जुबां से निकले और असर छोड़ गए..

चित्र
तुम्हारी जिंदगी में कोई है.. ये सवाल उतना ही अनसुलझा है. .जितना मैं सुलझा हुआ हूं.

वो शब्द, जो जुबां से निकले और असर छोड़ गए..

चित्र
कभी-कभी हम हम्माम में नंगे खड़े होते है. लेकिन नहा नहीं पाते.

सूखे पत्तों पर बूंदों की तरह

चित्र
सावन की पहली बारिश मेरे बगीचे में उतरी सूखे पत्तों पर बूंदों की तरह प्यासी धरती के आंचल पर रंगीले छींटों की तरह.. पेड़ों और खेतों के उस पार घने मेघ सुस्ता रहे है जमकर बरसने के बाद जोर जोर...से कड़कती बिजली कह रही है घनघोर मेघों से बरसने को.. बगीचे में भीनी-भीनी सी सुगंध मुस्कुरा रही है.. टहनियों तले, हवाओं के संग बादलों के आने की खुशी में जो उसके होने की वजह है भीगी हुई धरती की तरह... बादलों के जाने के बाद हर गली से बूंदे दौड़ रही है बहते पानी की शक्ल में.. पूरे प्रवाह के साथ.. उड़ते बादलों को पकड़ने के लिए जो उन्हें छोड़ गए है.. सभ्य, असभ्य शहरों और  अनजाने गांवों में.. ब्याहीं हुई बेटी की तरह..