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सरकारी स्कूलों से नक्सलवाद नहीं पनपता श्रीश्री

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आज सुबह ऑफिस पहुंचा, जयपुर पेज खोलते ही एक खबर देखी। शीर्षक था, सरकारी स्कूलों से उपजता है नक्सलवादः श्रीश्री रविशंकर, होठों पर एक कुटिल पसर गई। मैं समझ गया मन और दिल को श्रीश्री रविशंकर का बयान पचा नहीं। जैसे जैसे सूरज चढ़ता गया श्रीश्री खबरों में छाने लगे। पहले शिक्षक संघ वालों ने विरोध जताया और फिर कुछ सरकारी स्कूलों में बच्चों ने भी नाराजगी जताई। शाम होते होते पता चला कि जयपुर के सांगानेर इलाके की मजिस्ट्रेट कोर्ट में श्री श्री के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया गया है और गुरूवार को सुनवाई होगी। दिन भर श्रीश्री के बयानों से खेलने के बाद ये बात समझ में आ गई कि श्रीश्री के विचार और सोच कैसी है। वे एक आध्यात्मिक गुरू है या फिर निजी औऱ आध्यात्मिक स्कूलों के हिमायती। दरअसल रविशंकर ने मंगलवार शाम को अंबाबाड़ी इलाके में एक कार्यक्रम के दौरान साफ साफ शब्दों में कहा था कि सरकारी स्कूलों को बंद कर देना चाहिए क्यों कि यहां नक्सलवाद पनपता है। लेकिन हर बार की तरह अब वे एक बार फिर सफाई देते फिर रहे है। उनके बयान को लेकर चारों ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। आखिर किस बेसिस पर रविशंकर ने

जलाओ दिए..

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आठवीं में थे हम लोग, हम लोग यानि मैं और मेरी बहन, हिंदी की किताब में ये कविता अठारहवें पाठ में थीं। गोपाल दास नीरज मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं और उनकी यह कविता भी। हर शाम बिस्तर पर लेटे-लेटे हम लोग इसका पाठ किया करते थे। आज गूगल के सौजन्य से  मैंने  इसे ढूंढ निकाला, ताकि जब उन दिनों की याद आए, मैं इसे गा लूं, जीभर के...   जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना  अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए । नई ज्योति के धर नए पंख झिलमि ल,  उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले ,  लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी ,  निशा की गली में तिमिर राह भूले ,  खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगम ग,  ऊषा जा न पा ए,  निशा आ ना पा ए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना  अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।  सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में,   कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी ,  मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी ,  कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी ,  चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही ,  भले ही दिवाली यहाँ रोज आ ए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना  अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।  मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,   नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,   उतर