रुपयों की आग जलाता हूं..
जब, घुप्प अंधेरी जिंदगी में
रुपयों की आग जलाता हूं..
तुम्हारी मुहब्बत पिघलती हैं
कुछ अपने लिए...कुछ मेरे लिए..
माथे पर उभरे पसीने की तरह..
तुम जलती हो..
हमें आजमाने के लिए
11.12.2012
रुपयों की आग जलाता हूं..
तुम्हारी मुहब्बत पिघलती हैं
कुछ अपने लिए...कुछ मेरे लिए..
माथे पर उभरे पसीने की तरह..
तुम जलती हो..
हमें आजमाने के लिए
11.12.2012
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