FIRE IN BABYLON


फिल्मः फायर इन बेबीलोन (70 के दशक में अपराजेय रही वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम पर आधारित )
निर्देशकः स्टीवन रिले


1990 के बाद पैदा हुए क्रिकेटप्रेमियों के लिए यह कैरेबियन सागर में उठने वाली खौफनाक लहरों की तरह होती, जो पलक झपकते ही उनके पसंदीदा बल्लेबाज की गिल्लियां बिखेर देती। विकेट अपनी लंबाई से तीन चार गुने दूर छिटके नजर आते। 22 गज की पट्टी के एक छोर से रॉबर्ट्स और होल्डिंग को दौड़ते देख किसी भी बल्लेबाज के रोंगटे खड़े हो जाते, जब दोनों कैरेबियाई गेंदबाजों के दिल में किसी गोरे बल्लेबाज का नस्लीय कमेन्ट चुभ रहा हो। फायर इन बेबीलोन हमें एक ऐसे समय में ले जाती है। जब क्रिकेट सिर्फ क्रिकेट नहीं था। यह वह दौर था जब तेज गेंदबाजी किसी कप्तान की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा होती थी और क्रिकेट का मतलब रन बटोरने और विकेट लेने से कहीं ज्यादा था। फायर इन बेबीलोन 70 के दशक में अपराजेय रही वेस्टइंडीज टीम के सुनहरे दौर की गाथा है।

ये वही समय था जब अधिकांश टीमों के पास तेज गेंदबाजों की फौज हुआ करती थी। भद्रजनों का यह खेल पहचान की लड़ाई बन चुका था और नस्लीय कमेन्ट अपनी गहरी पैठ बना चुके थे। एक बल्लेबाज को जब यह पता हो कि अगली गेंद उसकी जान ले सकती है, उसके लिए शॉट खेलने से ज्यादा खुद को बचाना महत्वपूर्ण होता था। गौरतलब है कि यह मौजूदा समय से बिल्कुल अलग था, क्योंकि आज एक बल्लेबाज (जो सुरक्षा उपकरणों से पूरी तरह लैस है) के लिए रन बटोरना प्रमुख है, चाहे सामने वाले छोर पर कितना भी खतरनाक गेंदबाज हो। वैसे भी आज के दौर में रॉबर्ट्स, क्रॉफ्ट और होल्डिंग जैसा आतंक क्रिकेट के मैदान में पैदा कर पाना मुश्किल है।

राजनीतिक विज्ञान और खेल के छात्र के लिए फायर इन बेबीलोन एक महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह है। क्रिकेट की दुनिया में वेस्टइंडीज के स्वर्णिम काल पर आधारित एक फीचर डॉक्यूमेंट्री का फिल्मी रुप है फायर इन बेबीलोन। इस पूरी कहानी में वेस्टइंडीज क्रिकेट के पुराने दिग्गज एक महत्वपूर्ण कड़ी की तरह निर्देशक स्टीवन रिले के साथ बतियाते चलते हैं। क्लाइव लॉयड, विव रिचर्ड्स, गोर्ड्न ग्रीनीज, माइकल होल्डिंग, कोलिन क्रॉफ्ट और एंडी रॉबर्ट्स के शब्द इतने प्रभावी है कि वेस्टइंडीज टीम के उस समय चक्र को परदे पर वापस खींच लाते हैं। सिनेमाघर में बैठकर आप 15 सालों तक एक भी टेस्ट सीरीज नहीं गंवाने वाली वेस्टइंडीज टीम की भावना और जोश को महसूस कर सकते है।

माइकल होल्डिंग और ब्रायन क्लोज की आपसी प्रतिद्धंदिता हो या टोनी ग्रेग के आपत्तिजनक कमेन्ट से बौखलाए रॉबर्ट्स के सामने स्वयं ग्रेग का ढेर हो जाना। ऐसी कई सारी चीजें आपको सीट से हिलने का मौका नहीं देती। फिल्म के निर्देशक रिले का प्वाइंट यह है कि वेस्टइंडीज टीम की सफलता में उस पॉलिटिकल रिंग का महत्वपूर्ण रोल था, जो वर्षों की अंग्रेजी दासता से उभरा था। नस्लीय गालियां और कमेन्ट उसे मजबूर करते है कि वे इस लड़ाई को 22 गज की पट्टी पर सुलझा दें। रास्ताफेरियन मूवमेंट की वकालत करके वे उसे आध्यात्मिक मोड़ देते है और विव रिचर्ड्स का आगमन उन्हें इस लड़ाई को जीतने का भरोसा देता हैं। हालांकि इस पूरी लड़ाई को तत्कालीन नस्लीय विवाद भी पुख्ता करते हैं।

रिले जोर देकर कहते है कि एक टीम की सफलता में सांस्कृतिक रंगों का निकटतम संबंध होता हैं। यह वही दौर है जब बॉब मार्कले का संगीत पूरे विश्व को क्रेजी बना रहा होता हैं। वास्तव में 15 सालों तक चला वेस्टइंडीज का यह विजयी अभियान पूरे विश्व में अश्वेतों के सफलता की कहानी हैं। उत्तेजित करते बैकग्राउंड स्कोर और सांस रोक देने वाली पेस बैटरी के फुटेज फायर इन बेबीलोन की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। लेकिन अगर आप सिनेमाघर में बैठे मक्के के दाने चबाते हुए बैलेंस बनाए रखते है तो यह आपको नस्लीय चेहरों के साथ नजर आती हैं। जो इस बेबीलोन में हीरो और विलेन तय कर देती हैं।

हो सकता है यह आपको एकतरफा कहानी लगे जब आप इंग्लिश खिलाड़ियों के इंटरव्यू सुनें। जो इस फिल्म में आग पैदा करने के लिए संपादित कर दिए गए हैं। इन सबके बावजूद आप एक ऐसी डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए पैसा खर्च करते हैं जो सिनेमा के रुप में बॉक्स ऑफिस पर खड़ी है। हां, जब आप कुर्सियों से भरे उस हॉलनुमा कमरे से बाहर आते है तो फायर इन बेबीलोन की आग इस जेंटलमैन गेम के बारे में आपकी कल्पनाशीलता और जानकारी में बड़ा उलटफेर कर चुकी होती हैं। 

..हिंदी दैनिक जनसत्ता में प्रकाशित.

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