तुम्हारे साथ बैठे हुए...

मैं जिसे छोड़ आया था
कहीं और..
वो यहां मौजूद रहता है
तुम्हारे होते हुए भी
जब मैं तुम्हारे संग तन्हा होता हूं
मुझे अपने फैसले पर विस्मय होता है
चार लोगों के साथ बैठे हुए
तन्हा मिलता हूं..

मेरे पास कहानियां है..अपनी
लेकिन सुनने को कोई तैयार नहीं
ना तुम..ना कोई और
जिनके नाम से जमाना मुझे पहचानता है
क्योंकि कहानियों में तुम भी हो मौजूद
लोगों के किस्से है और मैं भी हूं..
लेकिन मेरे अपने ?..जिन्हें जमाना मेरा कहता है
सवाल वाजिब है..ये मेरे अपने
दरअसल, मेरे अनुभव है..सुख दुख की थाली में बंटे हुए

तुम चुन लो..
अपनी मर्जी से अपनी थाली
जो तुम्हें पसंद हो
अपने स्वाद के मुताबिक
जो तुम चाहो..
शायद मैं तुम्हें मिल जाऊं
नमकीन आंसू की तरह..
खुशी की मिठास लिए
फिर भी मैं तन्हा रहूंगा
तुम्हारे चुनने के बावजूद
क्योंकि तुमने अपनी थाली चुनी है
मुझे नहीं..

खुशी और गम से भरी मेरी कहानियां है
जख्म और कोमल एहसासों से बुनी हुई
इन्हें मैं अलग नहीं कर सकता
मैं अब भी तन्हा हूं..
तुम्हारी खाने की टेबल पर
तुम्हारे साथ बैठे हुए...


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