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...स्साला बड़ा बीहड़ हैं

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हजार शब्दों का ये टुकड़ा मुकुल आनंद की अग्निपथ की रीमेक, करन मल्होत्रा और करन जौहर की अग्निपथ को देखने के दौरान उभरी भावनाओं को रेखांकित करता हैं। हां.. ये फिल्म रिव्यू नहीं हैं। रात के साढ़े आठ बज रहे थे। तीन चार दोस्तों के बीच गप्पेबाजी का प्लान बन ही रहा था कि पत्रकार मित्र भाई जी अपने कमरे से दौड़ते हुए आए। देखा तो उनके पीछे राणा साहब भी हाथ पांव भांजते नजर आए। स्वप्नल ने आते ही ऐलान किया, कौन-कौन चलेगा अग्निपथ देखने। नाइट शो रात के दस बजे से 2 बजे तक जल्दी से हां या ना कहो..पत्रकार बंधु को जल्दी थी सो हमने भी जवाब देने में कोई देर नहीं लगाई। राजस्थान पत्रिका के पुल आउट जस्ट जयपुर को पलटकर शो का टाइम निश्चित किया गया और तीन साथियों का दल अग्निपथ के लिए पड़ा। तीन किलोमीटर दूर ग्लोबलाइजेशन के बाद सिनेमा हॉल का विकसित रुप इंटरटेनमेंट पैराडाइज के रुप में खड़ा हैं। गुलाबी शहर के मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने के लिए अपन पहली बार पधारे थे। शो शुरू होने में अभी एक घंटा बाकी था। राणा साहब ने कहा कि चलिए घूमते हैं देखा जाए पैराडाइज की चौहद्दी क्या हैं। राणा साहब के साथ हम चलते आए और