संदेश

फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कृषि विकास दर 5.6 प्रतिशत होने की उम्मीद

चित्र
यूपीए-२ का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने उम्मीद जताई है कि आने वाले सालों में कृषि विकास दर की रफ्तार 5.6 प्रतिशत रहेंगी। इसको हासिल करने के लिए वित्तमंत्री ने बजट में खास प्रावधान भी किए हैं जिसमें कृषि क्षेत्र में कर्ज के राशि को 3.75 करोड़ से बढ़ाकर 4.75 करोड़ रखा गया हैं, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास को 3000 करोड़ की सहायता, कृषि यंत्रों के आयात शुल्क पर छुट, उर्वरकों की खरीद पर कैश सब्सिडी और सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराने की बात भी की गई हैं। वित्तमंत्री ने समय पर कर्ज लौटाने की दशा में मिलने वाले छूट के प्रतिशत को एक अंक बढ़ाकर तीन प्रतिशत कर दिया हैं। गौरतलब है कि यह पिछले साल दो प्रतिशत था। वित्तमंत्री ने उम्मीद जताई है कि इन्द्र देव की मर्जी रही तो कृषि विकास दर के लक्ष्य को पाने में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। ज्ञातव्य है कि इन्द्र देव की कृपा के चलते ही वित्तमंत्री के पिछले कुछ महीने बेचैनी से गुजरे है। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री ने निजी एवं सार्वजनिक भागीदारी की मदद से सुरक्षित खाद्दान्न भण्डारण क्षमता में वृद्दि करने की बात भी कही। साथ ही यह भी कहा कि फल, स
चित्र
वो निकलते रहेंगे अपने सफर पर... इस देश की एक बड़ी आबादी आज भी लम्बी यात्राओं के लिए भारतीय रेलवे पर निर्भर हैं। कभी जनरल में तो कभी आरक्षित बोगियों में, क्योंकि वातानुकूलित बोगियों में यात्रा करने की इजाजत इनकी जेब नहीं देती। जनरल बोगियों में यात्रा करने वालों की संख्या हजारों नहीं लाखों में हैं। शायद भारतीय रेलवे से रोजाना यात्रा करने वालों में 80 फीसदी से भी ज्यादा। हर साल ये लोग रेलमंत्री से उम्मीद लगाए रहते है कि रेल मंत्रालय उनके लिए भी कुछ करेगा। ताकि वो लोग भी हैप्पी जर्नी का मंगलमय होना महसूस कर सके। एक्सप्रेस और मेल ट्रेनों से यात्रा करने वाले लोग अकेले नहीं होते। उनके साथ बीवी, बच्चे और परिवार वाले भी होते हैं। ट्रेने वैसे भी समय से ट्रैक पर नहीं होती हैं। आम यात्रियों का यह हुजुम सब्र छोड़कर जल्दी से जल्दी ट्रेन में सवार होने को बेताब रहता हैं। लेकिन यह बेताबी रेलवे पुलिस के डंडे से ठण्डी पड़ जाती है। बाद मुद्दत के ट्रेन को हरी झंडी दिखलाई जाती है और जीआरपी वाले बोगियों में चढ़ जाते है। सीट दिलाने के नाम पर सौ – पचास रुपये की वसूली होने लगती है। सौ रुपये लेकर किसी भी

आत्मशोधन, आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण।

चित्र
आज के समय में  गाँधी के आदर्श और उनके मूल्यों की जरूरत हर किसी को हो रही हैं। देश में बढ़ती हिंसा और अमीर गरीब के बीच बढती खाई ने गाँधी के बताये रास्तों पर चलने वालों के माथे पर शिकन की लकीरें खींच दी हैं। आज गाँधी के ग्राम स्वराज की कल्पना का दूर- दूर तक कोई निशान दिखाई नहीं देता।                आज देश की सत्ता कुछ चंद गिने चुने उद्योगपतियों और राजनेताओं के हाथों का खिलौना बनकर रह गयी है। गाँधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उनके समाधिस्थल राजघाट पर फूल चढ़ाने वालों की कोई कमी नहीं है। लेकिन फूल चढ़ाने वालों को गाँधी के विचारों , मूल्यों और सपनों से कोई लगाव नहीं है। इसका कारण बहुत कुछ है, लेकिन ये तो कहा जा सकता है की आज के सत्ताधीशों की पीढ़ी ने गाँधी के विचारों और मूल्यों से तौबा कर ली है।               गाँधी को समझने के लिए मात्र तीन चीज़ें ही काफी है। आत्मशोधन, आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण। अगर आप ने इन तीनों को अपने जेहन में उतार लिया तो समझिये आप ने गाँधी को समझ लिया। अगर हम गाँधी द्वारा किए गए कार्यो का अवलोकन करे तो गाँधी के व्यक्तित्व में ये तीनों चीज़ें साफ दिखती हैं । गाँधी को ह