इस राष्ट्रवाद के आगे आप का सिदांन्तवाद कहीं नहीं ठहरता।

  आईआईएमसी में इस साल जब से सामयिक चर्चाओं क़ि शुरुआत हुई है। एक चीज़ बार बार सुनने में आ रही है क़ि राष्ट्र का कोई औचित्य नहीं होता। मानता हूँ उनकी बात को   जो राजनीतिक किताबों में भी लिखी है। ऐसा नहीं है क़ि मेरे भाई - बंधू उसे दुसरे अर्थों में स्वीकारते है। लेकिन वो इसे पूरी तरह खारिज कर देते है।
              एक नागरिक क़ि पहचान उसके निवास स्थान से, उसके परिवेश से और उसके देश क़ि सीमाओं से होती है। वो किस इस देश का नागरिक है। आप उनसे पूछिये जिनके साथ  किसी देश का नाम जुड़ा नहीं है।  उन शरणार्थियों से पूछिये जिन्हें  कोई देश अपना नागरिक स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कुछ लोग इसी  देश में रहते है। यही का खाते है, फिर भारत क़ि सीमाओं को नहीं मानतें। मै जानना चाहता हूँ क़ि उनके लिए भारत का मतलब क्या है। क्या वो यही चाहते है क़ि हिंदुस्तान क़ि कोई सीमा  ना हों। उसे एक राष्ट्र क़ि मान्यता ना हों।
            बात अरुंधती रॉय से शुरू हुई थी। उन्हें गिरफ्तार किये जाने के उस आदेश से जिसमें कोर्ट ने उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कर गिरफ्तार करने को कहा था।  कुछ लोगों ने उनका पक्ष लिया और अभिव्यक्ति क़ि स्वतंत्रता का हनन करार दिया। लेकिन कुछ लोगों ने उनकी बात पूरी तरह खारिज कर अपने पक्ष रखे।  इसी दौरान ये भी सुनने में आया क़ि राष्ट्र का मतलब ही कुछ नहीं होता।
               इतिहास में जितने भी युद्ध लड़े गए। वो राष्ट्रों के बीच ही लड़े गए ना क़ि व्यक्तिगत रूप से अमेरिका, जापान , जर्मनी, फ्रांस ,रूस इन देशों के किसी व्यक्ति ने युद्ध नहीं लड़ा। बल्कि उस देश क़ि जनता का भी उसमें पूरा सहयोगपूर्ण हाथ था।  दुसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में हिटलर का उदय उसी राष्ट्र भावना  के तहत हुआ था।  अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने के बाद जापानियों का राष्ट्र प्रेम कौन भूल सकता है।
             "भीष्म पितामह" ने कहा था कि "राष्ट्र क़ि सीमाए माँ के आँचल क़ि तरह होती है"। मैं इन हिंदुस्तानियों से पूछना चाहता हूँ, क़ि अगर उन्हें इस देश का राष्ट्र प्रेम स्वीकार नहीं है। तब वे किस देश क़ि नागरिकता स्वीकार रहे है। मकबूल फ़िदा हुसैन ने कतर क़ि नागरिकता स्वीकार कर ली है। वो क्या थी। कतर  क्या एक राष्ट्र नहीं है। क्या वो उस देश के नागरिक नहीं हुए। अगर वो उस देश के नागरिक हों सकते हैं, तो फिर हम तो इस देश में पैदा हुए है। हमारा जन्म यहाँ हुआ है ये हमारी मातृभूमि है तो ये हमारा राष्ट्र नहीं हों सकता। या आप जैसे लोग इस देश क़ि नागरिकता मानने  को तैयार नहीं है।
             नक्सलियों के खून को खून और जवानों के खून को पानी मानने वालों से कहना चाहता हूँ कि  देश क़ि सीमा पर खड़ा जवान भी किसी का बेटा है। उसे कोई शौक नहीं है किसी के बेटे कि जान  लेने का लेकिन वो सिर्फ आप के लिए सर्दी के थपेड़ों को सहता है। वो गर्मी क़ि लू सिर्फ इसलिए बर्दाश्त करता है क़ि आप ठंडी छाव का मज़ा ले सके। इस राष्ट्रवाद के आगे आप का सिदांन्तवाद कहीं नहीं ठहरता। आईआईएमसी के एसी क्लास रूम में बैठकर उन्हें दोष देना बहुत अच्छा लगता है।
             घर के बगल में चोरी हों जाये तो पुलिस को बुलाते है। ना आये है तो गलियां पड़ती है। कर लेते आप अपनी सुरक्षा। शुक्र है आप को गोलिया लगने का खतरा नहीं है। लेकिन अगर होता तब क्या करते।  इस देश में किसी को भी कुछ कहने से कोई रोकने वाला नहीं है। ना किसी को रोका जाता है लेकिन आप अपने विचारों को सही ठहराने के लिए भावनाओं का गलत इस्तेमाल ना करे।  इस देश में बहुत सारे ऐसे लोग भी है। जो खाते तो इसी देश का है लेकिन गालियां भी इसी देश को देते है। ये बेशर्मी इसी देश में चलती है। क्यों क़ि इस देश का कानून इतना लचीला है क़ि उसे झकझोरनें वाले हाथ बहुत मजबूत दिखाई  देते है।

टिप्पणियाँ

  1. Here finally comes the neeed of science;::::
    Students from the top notch college some with science background must never panic on these outconcern as ...........
    its just a simpe game of frame of refrence as things change in 2D 3D and now in 4D also(where as we bhrti.. think in 6Ds)one can only think till the limit of frame of data dimension he is having.... and just a change in D he will flow from comunist to samajbadi to then after a libral also.no big concern but The Real Big thing is.. the impact must +tive because now u gays are in there n u all will rock youngistani
    jai hind love u all
    harsh (A DOt left behind smiling)

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  2. bahut sateek likha hai aapne
    sochne ko baadhya karti hai post

    aabhaar

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