इस राष्ट्रवाद के आगे आप का सिदांन्तवाद कहीं नहीं ठहरता।
आईआईएमसी में इस साल जब से सामयिक चर्चाओं क़ि शुरुआत हुई है। एक चीज़ बार बार सुनने में आ रही है क़ि राष्ट्र का कोई औचित्य नहीं होता। मानता हूँ उनकी बात को जो राजनीतिक किताबों में भी लिखी है। ऐसा नहीं है क़ि मेरे भाई - बंधू उसे दुसरे अर्थों में स्वीकारते है। लेकिन वो इसे पूरी तरह खारिज कर देते है। एक नागरिक क़ि पहचान उसके निवास स्थान से, उसके परिवेश से और उसके देश क़ि सीमाओं से होती है। वो किस इस देश का नागरिक है। आप उनसे पूछिये जिनके साथ किसी देश का नाम जुड़ा नहीं है। उन शरणार्थियों से पूछिये जिन्हें कोई देश अपना नागरिक स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कुछ लोग इसी देश में रहते है। यही का खाते है, फिर भारत क़ि सीमाओं को नहीं मानतें। मै जानना चाहता हूँ क़ि उनके लिए भारत का मतलब क्या है। क्या वो यही चाहते है क़ि हिंदुस्तान क़ि कोई सीमा ना हों। उसे एक राष्ट्र क़ि मान्यता ना हों। बात अरुंधती रॉय से शुरू हुई थी। उन्हें गिरफ्तार किये जाने के उस आदेश से जिसमें कोर्ट ने उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कर गिरफ्तार करने को कहा था। कुछ लोगों ने उनका पक्ष ल