रेडियो: एक दौर यह भी


आज के दौर में रेडियो क़ि बात करना थोड़ा बासी लगता है, जब लोग टेलीविजन और इन्टरनेट के दीवाने हो,शहरों में गुर्राते एफएम चैनलों के रहते कौन पारंपरिक रेडियो सुनता है,शहरी मध्य वर्ग क़ि लालसा को पूरा करने में कामयाब सरकार भले ही फील गुड करती हो, लेकिन आज भी इस देश का एक वर्ग ऐसा है जिसके पास मुलभुत सुविधाओं क़ि कमी है, जहाँ साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है तो गरीबी का ग्राफ सरकार के दावों के बावजूद कम नहीं होता, लोगो के मनोरंजन के साधनों क़ि बात करना बेमानी लगता है, ज्यादा दिन नहीं हुए मुझे देल्ही आये, मुझे याद है जब लोग सुबह सुबह हाथों में रेडियो लिए अपने खेतों के लिए निकलते थे, हाथों में फावड़ें और खेतीं के उपकरणों के साथ, लेकिन बगल में कंधे से लटकता रेडियो अपनी ही धुन में गुनगुनाता रहता था...... मैंने राम लखन धन पायो........ खाटी हिन्दुस्तानी और रेडियो का ये साथ बहुत सुहाना लगता था, आल इंडिया रेडियो और विविध भारती के कार्यक्रम दिन भर सुने जाते है, अमिन सयानी क़ि आवाज़ हर बच्चा पहचानता था,शाम को हर घर के बाहर झुंडों में लोग बैठ के बीबीसी और एआईआर पर न्यूज़ सुना करते है, खेतों में बजते रेडियो आपको इस बात का अहसास कराने के लिए काफी है क़ि........ मेरे देश क़ि धरत्ती सोना उगले, उगले हीरे मोती,मेरे देश क़ि धरती ये दौर भी हमने अपनी आखों से देखा था और आज का दौर भी देख रहे है लेकिन राजधानी के रेडियो चैनलों को अपनाने के लिए दिल तैयार नहीं होता, ये भी सच है क़ि समय लगातार बदलता जा रहा है. लेकिन मै मानता हूँ क़ि बदलाव सृजन का हिस्सा होते है,किन्तु ऐसा ना हो क़ि बदलाव पहचान के उपर हावी हो जाये, इस बात का ध्यान सबको रखना होगा, जो आज के रेडियो का हिस्सा है,रेडियो आज भी भारतीयता का वाहक है, क्यों क़ि आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रवाह इसी से होता है,आम भारतीय जो आज भी पिछड़ें और विकास से दूर इलाकों में रहता इसी रेडियो के सहारे अपनी जानकारियो को जुटाता है, चाहे वो बिहार के पिछड़ें इलाके हो या यूपी और असम के इलाके, रेडियो आज भी उनकी जिन्दगी का अहम् हिस्सा है.


धन्यवाद .....

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

Rahul Gandhi: Being Congress President in times of Modi

अमरूद की चटनी - Guava Chutney recipe - Amrood Ki Chutney